पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१५७

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( १३९ ) निद्रा कविरा सोया क्या करै उठिन भजै भगवान । जम जव धर ले जायँगे पड़ा रहेगा म्यान ॥५३०।। कविरा सोया क्या करै जागन की कर चौंप । ये दम हीरा लाल है गिनि गिनि गुरु को सौंप ॥५३१।। नींद निसानी मीच की उठ कवीरा जाग। और रसायन छाँड़ि के नाम रसायन लाग ।।५३२॥ पिउ पिउ कहि कहि कृकिए ना सोइय असरार । रात दिवस के कूकते कवहुँक लगै पुकार ।।५३३।। सोता साध जगाइए करै नाम का जाप । यह तीनों सोते भले साकत सिंह औ साँप ।।५३४।। जागन में सोवन करै सोवन में लौ लाय । सुरति डोरि लागी रहे तार टूटि नहिं जाय ।।५३५।। निंदा निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय । विन पानी सावुन विना निर्मल करै सुभाय ।।५३६।। तिनका कवहुँ न निदिए जो पाँवन तर होय । कवहूँ उड़ि आँखिन परै पीर घनेरी होय ॥५३७।। सातो सायर में फिरा जंबुदीप दै पीठ । निंद पराई ना करै सो कोइ बिरला दीठ ।।५३८॥ दोष पराया देखि करि चले हसंत हसंत । अपने याद न आवई' जाको श्रादि न अंत ॥५३९।। निंदक एकहु मति मिलै पापी मिलौ हजार। इक निंदक के सीस पर कोटि पाप को भार ॥५४०॥