पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१६४

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( १४६ ) साँच कहूँ तो मारिहैं झूठे जग पतियाय । ये जग काली कृकरी जो छेड़े ता खाय ॥६०५।। सब ते साँचा है भला जो साँचा दिल हो। साँच बिना मुख नाहिना कोटि कर जो कोइ ॥६०६।। मांचे सौदा कीजिए अपने मन में जानि । साँचे हीरा पाइप झूठे मूरी हानि ॥६०७।। वाचनिक ज्ञान ज्यां अँधरे को हाथिया सव काह को ज्ञान । अपनी अपनी कहत है का को धरिए ध्यान ।।६०८।। पानी से कहिए कहा कहत कबीर लजाय । अंधे आगे नाचने कला अकारथ जाय ॥६०९।। पानी भूल शान कथि निकट रमो निज प । याहर, गाजें यापुरे भीतर यस्तु अनूप ||१०|| भीतर तो भयो नहीं बाहर कये अनेक । जो पे भीतर लखि परे भीतर बाहर पक | | विचार पानी गंग पूनला राना पवन संचार । नाना यानी बोलता जानि धर्ग गरनार ||सा पर मद में ग्मय का नया विचार । गजिय निग्न नाम को नभिए विर विकार || माजनराहानि फरिमय रममा नाल । मर गम माग ग्मा जान योग किया पानीमरामिया मिला पिनागिन कार। दिन गरि पबिना | |