पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२०३

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'परिथम सुन्न जो जोत रहाई, ताकी कला अविद्या बाई । पुत्रन सँग पुत्री उपजाई, सिंध वैराट पसारा है। सतवें अकास उतर पुनि आई, ब्रह्मा विष्णु समाधि जगाई। पुत्रन सँग पुत्री परनाई, स्निग नाम · उच्चारा है। छठे अकास शिव अवगति भांरा, गंग गौर रिधि करती चौरा। गिरि कैलास गन करते सोरा, तहँ सोहं सिरमौरा है। पंचम अकास में विष्णु विराजे, लछमी सहित सिंहासन साजे । हिरिंग वैकुंठ भक्त समाजे, भक्तन कारज सारा है। चउथ अकास ब्रह्म विस्तारा, सावित्री संग करत विहारा। ब्रह्म ऋद्धि में ओम पद सारा, यह जग सिरजनहारा है ।। तिसर अकास रहे धर्मराई, नरक सुरग जिन लीन्ह वनाई । -करमन फल जीवन भुगताई, ऐसा अदल पसारा है।। दुसर अकास में इंद्र रहाई, देव मुनी वासा तहँ पाई।। रंभा करती निरत सदाई, कलिंग सब्द उच्चारा है। प्रथम अकास मृत्यु है लोका, जनम मरन का जहँ नित धोका। सो हंसा पहुंचे सतलौका, सतगुरु नाम उचारा है। चौदह तबक किया निरवारा, अव नीचे का सुनो विचारा। सात तवक में छः रखवारा, भिन भिन सुनो पसारा है। सेस धवल वाराह कहाई, मीन कच्छ और कुरम रहाई। __सो छ रहे सात के माहीं, यह पाताल पसारा है ॥३२॥ राम नाम महिमा ‘राम के नाम ते पिंड ब्रह्मंड सब राम का नाम सुनि भरम मानी। निरगुन निरंकार के पार परब्रह्म है तासु को नाम रंकार जानी॥ विष्णु पूजा करै ध्यान शंकर धरै. मनहिं सुविरंचि, बहु विविध वानी।