पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२१४

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( १९६ ) बाजी तोरथ व्रत श्राचारा । बाजी जोग जल व्यवहारा ।। राजी जल थल सकल किवाई। वाजी सों वाजी लिपटाई ।। बाजी का यह सकल पसारा । बाजी माहि रहे संसारा॥ कद कबीर सब बाजी माहीं। बाजीगर को चीन्हें नाहीं ।।५८॥ मन-महिमा संतो यह मन है बड़ जालिम । जासी मन सां काम परो है तिसही है है मालुम ।। मन कारण की इनकी छाया तेहि छाया में अटके । निरगुन सरगुन मन की बाजी खरे सयाने भटके ।। मनही चौदह लोक बनाया पाँच तत्व गुण कीन्हे । तीन लोक जीवन बस कीन्हे परं न काह चीन्हे ।। जो कोउ कह हम मन को मारा जाके रूप न रेखा । छिन छिन में कितनो रंग लाये जे सपने नाहि देखा ।। रामातल बकदस ब्रह्मटा सब पर अदल चलावै । पट रम में भोगा मन राजा ना कैसे के पाये ।। मय के ऊपर नाम निरच्छर नह ले मन को गये। नव मन की गति जानि पर यह मत कबीर मुग्य भाग्य।।५।। निर्वाण पढ़ पंधित माधि का समुभाई। जाने श्रावागवन नसाई। मयं धर्म श्री नाम मोक्ष फल कीन दिगा यम भाई ।। TR. दषिमन प्रग्र पनियम माग पवालहि माद। बिन गोपाय टोर गाद कल गरल बाल धों काहे ।।