पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२४१

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( २२३ ) हंस सरोवर कमल सरीरा । राम रसायन पिवै कवीरा ॥१३९॥ सोच समझ अभिमानी, चादर भई है पुरानी। टुकड़े टुकड़े जोड़ि जुगत से, सी के अँग लपटानी । कर डारी मैली पापन सों, लोभ मोह में सानी । ना एहि लग्यो ज्ञान के साबुन, ना धोई मल पानी । सारी उमिर ओढ़त वीती, भली बुरी नहिं जानी ॥ संका मान जान जिय अपने, यह है चीज विरानी । कह कवीर धरि राखु जतन से, फेर हाथ नहीं पानी ॥१४०।। वहुर नहिं आवना या देस।। जो जो गए वहुर नहिं आए, पठवत नाहि सँदेस ।। सुर नर मुनि श्री पीर श्रौलिया देवी देव गनेस । धरि धरि जनम सवै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस ।। जोगी जंगम और संन्यासी दीगंवर दरवेस । चुंडित मुंडित पंडित लाई सरग रसातल सेस ॥ ज्ञानी गुनी चतुर औ कविता राजा रंक नरेस । कोइ रहीम कोइ राम वखानै कोइ कहै आदेस । नाना भेख बनाया सवै मिलि हूँढि फिरे चहुँ देस।। कहे कबीर अंत ना पैहो विन सतगुरु उपदेस ॥१४॥ वा दिन की कछु सुध कर मन माँ। जा दिन लै चलु लै चलु होई, ता दिन संग चलै नहिं कोई ।। तात मात सुत नारी रोई, माटी के संग दियो समोई। ___.सो माटी काटेगी तन माँ। उलफत नेहा कुलफत नारी । किसकी वीवी किसकी वाँदी। किसका सोना किसकी चाँदी । जा दिन जम ले चलिहै वाँदी॥ डेरा जाय परै वहि वन माँ। टाँडा तुमने लादा भारी। वनिज किया पूरा. व्यापारी। जूत्रा खेला पूँजा हारी । अव चलने की भई तयारी॥