पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२६१

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( २३९ ) ब्रह्म कुलाल मेदिनी भरिया उपजि विनस कित गइया जी। माँस मछरिया जो पै खाने जो खेतन में वोइया जी ।। माटी को करि देवी देवा जीव काटि कटि देइया जी। जो तेरा है साँचा देवा खेत चरत किन लेइया जी ।। कहत कबीर सुनो हो संतो राम नाम नित लेया जी। जो कुछ किय जिह्वा के स्वारथ बदल परारा ईया जी ॥१८॥ भूला चे अहमक नादाना तुम हरदम रामहिं ना जाना। वरवस प्रानि के गाय पछारा गला काटि जिउ आप लिया ।। जीता जिउ मुरदा करि डारै तिसको कहत हलाल किया। जाहि माँस को पाक कहत हैं ताकी उत्पति सुतु भाई । रज वीरज सो माँस उपानी माँस न पाक जो तुम खाई। अपनो दोख कहत नहिं अहमक कहत हमारे वड़न किया। उन का खून तुम्हारी गरदन जिन तुम को उपदेस दिया ।। स्याही गई सफेदी आई दिल सफेद अजहूँ न झुश्रा । रोजा नेवाज वाँग क्या कीजै हुजरे भीतर वैट मुआ। पंडित वेद पुरान पढ़े नौ मौलाना पढ़े कुराना। कह कवीर वे नरक गए जिन हर दम रामहि ना जाना ॥१८८॥ आओ वे मुझ हरि को नाम । और सकल तजु कौने काम ॥ कहँ तव आदम कहँ तव हौा । कहँ तव पीर पैगंवर हा ।। कह तव जमी कहाँ असमाना। कहँ तव चेद किताव पुराना॥ जिन दुनिया में रची मसीद । झूठा रोजा झूठी ईद ॥ साँच एक अन्ला को नाम । ताको नय नय करो सलाम ।। कहुधौं भिस्त कहाँ ते आई। किसके हेतु तुम छुरी चलाई ।। करता किरतिम चाजी लाई । हिंदु तुरुक दुई राह चलाई ।। कह तव दिवस कहाँतव राती । कहँ तब किरतिम की उतपाती। नहिं वाके जाति नहीं वाके पाँती । कह कवीर वाके दिवस न राती ॥१८॥