पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२६९

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( . २४७ ) कहै भाइ यह भुजा हमारी नारि कहै नर मेरा॥ पेट पकरि के माता रोवै बाँह पकरि के भाई। लपटि भपटि कै तिरिया रोवै हंस अकेला जाई ।। जव लग जीवे माता रोवै बहिन रोवै दस मासा । तेरह दिन तक तिरिया रोवै फेर करै घर वासा ।। चार गजी चरगजी मँगाया चढ़ा काट की घोरी। चारों कोने आग लगाया फूंक दिया जस होरी ।। हाड़ जरै जस लाकड़ी केस जरै जस घासा । सोना ऐसी काया जरि गइ कोई न आया पासा।। घर की तिरिया रोक्न लागी हूँढ़ फिरी चहुँ पासा । कहत कबीर सुनो भाई साधो छाँडो जग की आसा।२०९। रहना नहिं देस विराना है। यह संसार कागद की पुड़िया बूंद पड़े घुल जाना है। यह संसार काँट की बाड़ी उलझ पुलझ मरि जाना है। यह संसार भाड़ आ झॉखर आग लगे वरि जाना है। कहत कवीर सुनो भाई साधो सतगुरु नाम ठिकाना है ।२१०॥ जियरा जावगे हम जानी। पाँच तत्त को वनो पीजरा जामें वस्तु विरानी। आवत जावत कोइ न देखो इचि गयो विन पानी ।। राजा जैहैं रानी जैहैं औ जैहैं अभिमानी । जोग करते जोगी जइहैं कथा सुनंते ज्ञानी।। पाप पुन की हाट लगी है धरम दंड दरवानी। पाँच सखी मिलि देखन आई एक से एक सयानी॥ चंदो जइह सुरजौ जइहैं जइहैं पवनो पानी। कह कवीर इक भक्त न जैहैं जिनकी मति ठहरानी ।।२१।। मन तू क्यों भूला रेभाई । सुध वुध तेरी कहाँ गई। जैसे पंछी रैन बसेरा वसै विरिछ पर . आई ।।