पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२७३

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( २५१ ) ब्रह्मा विष्णु, महेस न सेसवा । जोगिन जंगम मुनि दरवेसवा ।। आदि न अंत न काल-कलेसवा । दाल कवीर ले आए सँदेसवा ।। सार शब्द नहि चलु वोहि देसवा ।।२२२।। __ झीनी झीनी बीनी चदरिया। काहे कै ताना काहे कै भरनी कौन तार से चीनी चदरिया ।। (गला पिंगला ताना भरनी सुपमन तार से बीनी चदरिया । आठ कँवल दल चरखा डोले पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया। साई को सियत मास दस लागे ठोक ठोक के वीनी चदरिया।। सो चादर सुर नर मुनि ओढ़े पोढ़ि के मैली कीनी चदरिया । दासं कवीर जतन से श्रोढ़ी ज्यों की योधर दीनी चदरिया।२२३॥ तोर हीरा हेराइल वा कचरे में। कोइ पूरव कोइ पच्छिम हूँ? कोई हूँढ़े पानी पथरे में। सुर नर मुनि अरु पीर औलिया सब भूलल बाड़े नखरे में। साहव कवीरहीरायह परखें वाँध लिहले लँगोटी के अँचरे में२२४ धुंधमई का मेला नाहीं नहीं गुरू नहिं चेला। सकल पसारा जेहि दिन माँही जेहि दिन पुरुख अकेला।। गोरख हम तव के वैरागी । हमरी सुरति नाम से लागी। ब्रह्मा नहिं जव टोपी दीन्हा, विश्नु नहीं जव टीका ।। शिव सक्ती के जनमो नाही, जवै जोग हम सीखा। सतजुग में हम पहिरि पाँवरी त्रेता झारी झंडा ॥ द्वापर में हम अड़वद पहिरा कलउ फिरौ नव खंडा। कासी में हम प्रगट भए हैं, रामानंद चेताए । समरथ को परवाना लाए, हंस उवारन पाए । सहजै सहजै मेला होइगा, जागी भक्ति उतंगा। कहै कबीर सुनो हो गोरख चलो सब्द के संगा ।।२२५।।