पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/३६

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- mame- - - - A- % ४-हिंडोला, ५-भूलना, ६ कबीरपाँजी, ७ कहरा, ८-शब्दावली। प्रशंसित महाराज रीवाँ ने अपनी टीका में कवीर साहब विरचित निम्नलिखित ग्रंथों के नाम लिखे हैं और इनमें से प्रायः शब्द और साखियों को उद्धृत करके प्रमाण दिया है । किंतु ज्ञात होता है कि इन ग्रंथों की गणना "खास ग्रंथ' में नहीं है। क्योंकि ये उनके अतिरिक्त हैं। १-निर्भय ज्ञान, २-भेद सार, ३-आदि टकसार, ४-ज्ञान सागर, ५-भवतरण । मुझे कवीर साहब के मौलिक ग्रंथों में से केवल दो ग्रंथ मिले, एक वीजक और दूसरा चौरासी अंग की साखी । इनके अतिरिक्त वेलवेडियर प्रेस की छपी कवीर शब्दावली, चार भाग, ज्ञानगुदड़ी व रेखते, और साखी संग्रह नाम की पुस्तके भी हस्तगत हुई। वेलवेडियर प्रेस के स्वामी 'राधास्वामी मत' के हैं। इस मतवाले कवीर साहब को अपना आदि आचार्य मानते हैं; इसलिये इस प्रेस की छपी पुस्तकों के बहुत कुछ प्रामाणिक होने की आशा है। उन्होंने भूमिका में इस बात को प्रकट भी किया है। गुरु नानक संप्रदाय के 'आदि ग्रंथ' में भी कवीर साहव के बहुत से शब्द और साखियाँ संगृहीत हैं। मैंने उक्त दो मौलिक और इन्हीं सव संगृहीत ग्रंथों के आधार पर अपना संग्रह प्रस्तुत किया है। ___इन ग्रंथों की अधिकांश कविता साधारण है। सरस पद्य कहीं कहीं मिलते हैं । हाँ, जहाँ कवीर साहव पूरवी बोलचाल और चलते गीतों में अपने विचार प्रकट करते हैं, वहाँ की कविता निस्संदेह अधिक सरस है। किंतु छंदोभंग इन सव में इतना अधिक है कि जी ऊब जाता है। जहाँ तहाँ 20comaamrpaamananR-