पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/५१

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धर्मसिद्धांत जो हो, चाहे कवीर की शिक्षाएँ अधिकतर हिंदू श्राकार में धीरे धीरे ढल गई हों, चाहे अहिंदू भावापन्न हो गई हों, परंतु प्राप्त रचनाओं को छोड़कर उनके धर्म-सिद्धांतों के निर्णय का दूसरा मार्ग नहीं है। यह सत्य है, जैसा कि श्रीमान् वेस्कट लिखते हैं कि- __उनकी शिक्षाओं का स्पष्टीकरण चुनी बातों में से भी चुनी बातों के आधार पर अवश्य ही सदोष होगा; और यह भी संभव है कि वह भ्रांत वनावे, यदि वह उनके समस्त सिद्धांतों की व्याख्या समझी जाय। कवीर ऐंड दी कबीर पंथ, पृष्ट ४७ किंतु यह भी वैसा ही सत्य है कि प्राप्त रचनाओं में से मौलिक और कृत्रिम रचनाओं का पृथक् करना अत्यंत दुर्लभ, वरन् असंभव है। उनमें परस्पर विरुद्ध विचार इस अधिकता से हैं कि उनके द्वारा किसी वास्तविक सिद्धांत का अभ्रांत रूप से निर्णय हो ही नहीं सकता। हाँ, इस पंथ का अवलंवन किया जा सकता है कि इन रचनाओं में जो विचार व्यापक भाव से वारंवार प्रकट और प्रतिपादित किए गए हैं, उन्हें मुख्य और उसी विषय के दूसरे विचारों को गौण मान लिया जाय । पक्व और अपक्क अवस्था के विचारों में अंतर हुआ करता है। अनुभव, शान-उन्मेप और वयस मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। कवीर.साहव इस व्यापक नियम से वाहर नहीं हो सकते; इसलिये उनके विचारों में भी अंतर पड़ जाना असंभव नहीं। निदान इसी सूत्र की सहायता से मैं कबीर साहब के धर्मसिद्धांतों के निरूपण का प्रयत्न करता हूँ.. ... ... ... ... ... ..