पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/८६

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( ८० ) "हिंदुओं के मजहव का अस्ल' उसूल हकशिनासी है। खुदाशिनासी से इंसान खुदा हो जाता है। लिहाजावुत, सन- मखाना, कलीसा, कितावे इन्सान की मुई और उसके रूहानी लड़कपन की मददगार हैं। इन्हीं के जरिए से वह आगे तरकी करता जावेगा।" -रहनुमायाने हिंद, पृ० १८, १९ हमको यहाँ मूर्तिपूजा का प्रतिपादन नहीं करना है । हमने इन वाक्यों को यहा इसलिये उठाया है कि देखें, हिंदुओं की मूर्तिपूजा में औरों को कुछ तत्त्व दृष्टिगत होता है या नहीं । मूर्तिपूजा हिंदुओ का प्रधान धर्म नहीं है। शास्त्र कहता है- उत्तमं ब्रह्मसद्भावो मध्यमं ध्यानधारणा । __ स्तुतिप्रार्थनाधमाझेया वाहपृजाधमाधमा ॥ ब्रह्म सद्भाव उत्तम, ध्यानधारणा मध्यम, स्तुति प्रार्थना अधम, और वाह्यपूजा अर्थात् किसी मूति इत्यादि को लामने रखकर उपासना करना अधमाधम है । भागवत ऐसा परम वैष्णव ग्रंथ कहता है-"प्रतिमा अल्पबुद्धीनाम्" "सर्वत्रवि- जितात्मनाम् । प्रतिमा अल्पवुद्धियों के लिये है। क्योंकि विजि- तात्माओं के लिये परमात्मा सर्वत्र है। प्रतीक उपासना का अाभास वैदिक ओर दार्शनिक काल में मिलता है। किंतु प्रतिमा पूजा बौद्ध काल और उसके परवती काल से हिंदुया में केवल समाज की मंगल-कामना से गृहीत हुई है। जो और साधनायों द्वारा परमात्मा की उपासना नहीं कर सकता, उसके लिये ही प्रतिमा-पृजा की व्यवस्था है। यदि विद्वानां श्रोर मानियों को प्रतिमा-पूजन करते देखा जाता है, तो उसका उद्देश्य लोक संरक्षण मात्र है। क्योंकि बुद्धि-भेद, सर्वनाधरग को ब्रांन कर सकता है। भारतवर्ष के धर्मनताओं ने हिंदू धर्म के प्रधान और व्यापक सिद्धांतों पर ग्रामढ़ होकर मदा