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कर्बला

हुसैन--–हुर, जिस लालच ने कूफ़ा के रईसों को मुझसे फेर दिया, क्या वह यमन में अपना असर न दिखाएगा? इन्सान की गफ़लत सब जगह एक-सी होती है। मेरे लिए कूफ़ा के सिवा दूसरा रास्ता नहीं है। अगर तुम न जाने दोगे, तो ज़बर्दस्ती जाऊँगा। यह जानता हूँ कि वहीं मुझे शहादत नसीब होगी। इसकी खबर मुझे नाना की ज़बान मुबारक से मिल चुकी है। क्या खौफ़ से शहादत के रुतबे को छोड़ दूँ?

हुर---अगर आप जाना ही चाहते हैं, तो मस्तूरात को वापस कर दीजिए।

हुसैन---हाय, ऐसा मुमकिन होता, तो मुझसे ज्यादा खुश कोई न होता। मगर इनमें से कोई भी मेरा साथ छोड़ने पर तैयार नहीं है।

[ किसी तरफ़ से ॐ ॐ की आवाज आ रही है। ]

योगी---हज़रत, यह आवाज़ कहाँ से आ रही है? इसे सुनकर दिल पर रोब तारी हो रहा है।

[ एक योगी भभूत रमाये, जटा बढ़ाये, मृग-चर्म कंधे पर रखे हुए आते हैं। ]

योगी---भगवन्! मैं उस स्थान को जाना चाहता हूँ, जहाँ महर्षि मुहम्मद की समाधि है।

हुसैन---तुम कौन हो? यह कैसी शक्ल बना रक्खी है?

योगी--साधु हूँ। उस देश से आ रहा हूँ, जहाँ प्रथम ओंकार-ध्वनि की सृष्टि हुई थी। महर्षि मुहम्मद ने उसी ध्वनि से संपूर्ण जगत् को निनादित कर दिया है। उनके अद्वैतवाद ने भारत के समाधि-मग्न ऋषियों को भी जागृति प्रदान कर दी है। उसी महात्मा की समाधि का दर्शन करने के लिए मैं भारत से अाया हूँ, कृपा कर मुझे मार्ग बता दीजिए।

हुसैन---आइए, ख़ुशनसीब कि अापकी ज़ियारत हुई। रात का वक्त है, अँधेरा छाया हुआ है। इस वक्त यहीं अाराम कीजिए। सुबह मैं आपके, साथ अपना एक आदमी भेज दूँगा।

योगी---( ग़ौर से हुसैन के चेहरे को देखकर ) नहीं महात्मन् , मेरा व्रत है कि उस पावन भूमि का दर्शन किये बिना कहीं विश्राम न करूँगा। प्रभो