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कर्बला

कितनी शान से बसर होगी। तुफ़् है मुझ पर, जो अपनी शान और हुकूमत के लिए बड़े-से-बड़े गुनाह करने का इरादा कर रहा हूँ। नहीं, मुझसे यह फेल न होगा। रै' जन्नत ही सही, पर फ़र्ज़ेदे-रसूल का ख़ून करके मुझे जन्नत में जाना भी मंजूर नहीं।

[ ज़ियाद का प्रवेश। ]

साद---अस्सलामअलेक। अमीर ज़ियाद, मैं तो खुद ही हाज़िर होनेवाला था। अापने नाहक तकलीफ़ की।

ज़ियाद---शहर का दौरा करने निकला था। बाग़ियों पर इस वक्त बहुत सख्त निगाह रखने की ज़रूरत है। मुझे मालूम हुआ है कि हबीब, जहीर, अब्दुल्लाह वग़ैरह छिपकर हुसैन के लश्कर में दाखिल हो गये हैं। इसकी रोक-थाम न की गयी, तो बाग़ी शेर हो जायँगे। हुसैन के साथ आदमी थोड़े हैं, पर मुझे ताज्जुब न होगा, अगर यहाँ आते-आते उसके साथ आधा शहर हो जाय। शेर पिंजरे में भी हो, तो भी उससे डरना चाहिए। रसूल का नाती फ़ौज का मुहताज नहीं रह सकता। कहो, तुमने क्या फ़ैसला किया? मैं अब ज्यादा इन्तज़ार नहीं कर सकता।

साद---या अमीर, हुसैन के मुक़ाबले के लिए न तो अपना दिल ही गवाही देता है, और न घर वालों की सलाह होती है। आपने मुझे 'रै' की निजामत अता की है, इसके लिए आपको अपना मुरब्बी समझता हूँ। मगर कले-हुसैन के वास्ते मुझे न भेजिए।

ज़ियाद---साद, दुनिया में कोई खुशी बग़ैर तकलीफ़ के नहीं हासिल होती। शहद के साथ मक्खी के डंक का ज़हर भी है। तुम शहद का मज़ा उठाना चाहते हो, मगर डंक की तकलीफ़ नहीं उठाना चाहते। बिला मौत की तकलीफ़ उठाये जन्नत में जाना चाहते हो। तुम्हें मजबूर नहीं करता। इस इनाम पर हुसैन से जंग करने के लिए आदमियों की कमी नहीं है। मुझे फ़रमान वापस दे दो, और आराम से घर बैठकर रसूल और खुदा की इबादत करो।

साद---या अमीर! सोचिए, इस हालत में मेरी कितनी बदनामी होगी। सारे शहर में खबर फैल गयी कि मैं 'रै' का नाज़िम बनाया गया हूँ। मेरे