पृष्ठ:कर्बला.djvu/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५५
कर्बला

ज़ियाद---क्या? हुसैन से मुलाक़ातें भी कर रहा है? तुम साबित कर सकते हो?

शिमर---हुज़ूर, मेरे सबूत की ज़रूरत नहीं। उनका क़ासिद आता ही होगा।

साद---क्या कई बार मुलाक़ातें हुई हैं?

शिमर---अाज की मुलाक़ात का तो मुझे इल्म है, पर शायद और भी मुलाक़ातें तनहाई में हुई हैं।

ज़ियाद---कोई और आदमी साथ नहीं रहा?

शिमर---मैंने खुद साथ चलना चाहा था, पर मेरी अर्ज़ क़बूल न हुई।

ज़ियाद---कलाम पाक की क़सम, मैं इसे बर्दाश्त न कर सकता। मैंने उसे हुसैन से जंग करने को भेजा है, मसालहत करने के लिए नहीं। मैं उससे इसका जवाब तलब करूँगा।

शिमर---हुज़ूर ने उनके साथ जो सलूक किये हैं, और इस काम के लिए जो सिला तजवीज़ किया है, वह तो किसी दुश्मन को भी आपका दोस्त बना देता। मगर अपना-अपना मिज़ाज ही तो है।

[ एक क़ासिद का प्रवेश। ]

क़ासिद---अस्सलामअलेक। या अमीर, उमर बिन साद का ख़त लाया हूँ।

[ ज़ियाद को खत देता है, और ज़ियाद उसे पढ़ने लगता है। क़ासिद बाहर चला जाता है। ]

ज़ियाद---इस मसलहत का नतीजा तो अच्छा निकला। हुसैन वापस जाने को रज़ामंद हैं, और साद ने इसकी ताईद करते हुए लिखा है कि उनकी जानिब से किसी ख़तरे का अंदेशा नहीं। ख़लीफ़ा यज़ीद की मंशा भी यही है। साद ने ख़ूब किया कि बग़ैर जंग के फतह हासिल कर ली।

शिमर---बेशक बड़ी शानदार फ़तह है!

ज़ियाद---क्यों, यह फ़तह नहीं है! तंग क्यों करते हो?

शिमर---जिसे आप फ़तह समझ रहे हैं, वह फ़तह नहीं, आपकी