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कर्बला

अब्दुल्ला---तू उन सरदाराने-फ़ौज से क्या लड़ेगा, जिनकी ज़िन्दगी ज़ियाद की गुलामी में गुज़री। तुझे उन रईसों को ललकारते हुए शर्म भी नहीं आती। तुझ-जैसों के लिए मैं ही काफ़ी हूँ।

[ यसार तल़वार लेकर झपटता है। अब्दुल्लाह एक ही वार में उसका काम तमाम कर देते हैं। तब सालिम उन पर टूट पड़ता है। अब्दुल्लाह की पाँचों उँगलियाँ कट जाती हैं, तलवार ज़मीन पर गिर पड़ती है। वह बायें हाथ में नेज़ा ले लेते हैं, और सालिम के सीने में नेज़ा चुभा देते हैं। वह भी गिर पड़ता है। ज़ियाद की फ़ौज से निकलकर लोग अब्दुल्लाह को घेर लेते हैं। इधर से क़मर लकड़ी लेकर दौड़ती है। ]

क़मर---मेरी जान तुम पर फ़िदा हो, रसूल के नेवासे के लिए लड़ते-लड़ते जान दे दो। मैं भी तुम्हारी मदद को आयी।

अब्दुल्लाह---नहीं-नहीं, क़मर, मेरे लिए तुम्हारी दुआ काफ़ी है; इधर मत आओ।

कमर---मैं इन शैतानों को लकड़ी से मारकर गिरा दूँगी। एक के लिए दो भेजे, जब दोनों जहन्नुम पहुँच गये, तो सारी फ़ौज निकल पड़ी। कह कौन-सी ज़ंग है?

अब्दुल्लाह---मैं एक ही हाथ से इन सबको मार गिराऊँगा। तुम खेमे में जाकर बैठो।

क़मर---मैं जब तक ज़िन्दा हूँ, तुम्हारा साथ न छोडूँगी। तुम्हारे साथ ही रसूल पाक की ख़िदमत में हाज़िर हूँगी।

हुसैन---(क़मर से) ऐ नेक खातून, तुझ पर अल्लाह ताला रहम करे। तुम वहाँ जाअोगी, तो यहाँ मस्तूरात को खबर कौन लेगा? औरतों को जिहाद करना मना है। लौट आअो, और देखो तुम्हारा जाँबाज़ शौहर एक हाथ से कितने आदमियों का मुक़ाबला कर रहा है। अाफ़रीं है तुम पर, मेरे शेर! तुमने अपने रसूल की जो खिदमत की है, उसे हम कभी न भूलेंगे। खुदा तुम्हें उसकी जज़ा देगा। आह! ज़ालिमों ने तीर मारकर ग़रीब को गिरा दिया! खुदा उसे जन्नत दे।