होगी। दो-चार महीने बाद घरवालों को सूचना दे दूँगा। न कोई तहलका मचेगा, न कोई तूफ़ान आयेगा। यह है मेरा प्रोग्राम। मैं इसी वक्त उसके पास जाता हूँ; अगर उसने मन्जूर कर लिया, तो लौटकर फिर यहीं आऊँगा, और मायूस किया, तो मेरी सूरत न देखोगे।
यह कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ और तेजी से गोबर्धनसराय की तरफ़ चला। सलीम उसे रोकने का इरादा करके भी न रोक सका। शायद वह समझ गया था, कि इस वक्त इसके सर पर भूत सवार है, किसी की न सुनेगा।
माघ की रात। कड़ाके की सर्दी। आकाश पर धुआँ छाया हुआ था। अमरकान्त अपनी धुन में मस्त चला जाता था। सकीना पर क्रोध आने लगा। मुझे पत्र तक न लिखा। एक कार्ड भी न डाला। फिर उसे एक विचित्र भय उत्पन्न हुआ, सकीना कहीं बुरा न मान जाय। उसके शब्दों का आशय यह तो नहीं था कि वह उसके साथ कहीं जाने पर तैयार है। संभव है, उसकी रज़ामन्दी से बुढ़िया ने विवाह ठीक किया हो। संभव है, उस आदमी की उसके यहाँ आमद-रफ्त भी हो। वह इस समय वहाँ बैठा न हो। अगर ऐसा हुआ, तो अमर वहाँ से चुपचाप चला आयेगा। वह बात करती होगी तो उसके सामने उसे और भी संकोच होगा। वह सकीना से एकान्त वार्तालाप का अवसर चाहता था।
सकीना के द्वार पर पहुँचा, तो उसका दिल धड़क रहा था। उसने एक क्षण कान लगाकर सुना। किसी की आवाज़ सुनाई दी। आँगन में प्रकाश था। शायद सकीना अकेली है। मुँह मांगी मुराद मिली। आहिस्ता से जंजीर खटखटाई। सकीना ने पूछकर तुरन्त द्वार खोल दिया और बोली—अम्मा तो आप ही के यहाँ गई हुई है।
अमर ने खड़े-खड़े जवाब दिया—हाँ, मुझसे मिली थीं, और उन्होंने जो खबर सुनाई, उसने मुझे दीवाना बना रखा है। अभी तक मैंने अपने दिल का राज तुमसे छिपाये रखा था सकीना, और सोचा था, कि उसे कुछ दिन और छिपाये रहूँगा, लेकिन इस खबर ने मुझे मजबूर कर दिया है कि तुमसे वह राज कहूँ। तुम सुनकर जो फ़ैसला करोगी, उसी पर मेरी जिन्दगी का दारोमदार है। तुम्हारे पैरों पर पड़ा हुआ हूँ, चाहे ठुकरा दो या उठाकर सीने से