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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/१०२

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लगा लो। कह नहीं सकता यह आग मेरे दिल में क्यों कर लगी; लेकिन जिस दिन तुम्हें पहली बार देखा, उसी दिन से एक चिनगारी सी अन्दर पैठ गयी और अब वह एक शोला बन गयी हैं। और अगर उसे जल्द बुझाया न गया, तो मुझे जलाकर खाक कर देगी। मैंने बहुत ज़ब्त किया है सकीना, घुट-घुटकर रह गया हूँ; मगर तुमने मना कर दिया था, आने का हौसला न हुआ। तुम्हारे क़दमों पर मैं अपना सब कुछ कुरबान कर चुका हूँ। वह घर मेरे लिए जेलखाने से बदतर है। मेरी हसीन बीबी मुझे संगमरमर की मूरत-सी लगती है, जिसमें दिल नहीं, दर्द नहीं। तुम्हें पाकर मैं सब कुछ पा जाऊँगा।

सकीना जैसे घबरा गयी। जहाँ उसने एक चुटकी आटे का सवाल किया था, वहाँ दाता ने ज्योनार का एक भरा थाल लेकर उसके सामने रख दिया। उसके छोटे-से पात्र में इतनी जगह कहाँ है? उसकी समझ में नहीं आता, कि उस विभूति को कैसे समेटे? आँचल और दामन सब कुछ भर जाने पर भी तो वह उसे समेट न सकेगी। आँखें सजल हो गयीं, हृदय उछलने लगा। सिर झुकाकर संकोच-भरे स्वर में बोली--बाबूजी, खुदा जानता है, मेरे दिल में तुम्हारी कितनी इज्जत और कितनी मुहब्बत है। मैं तो तुम्हारी एक निगाह पर कुरबान हो जाती। तुमने तो भिखारिन को जैसे तीनों लोक का राज्य दे दिया, लेकिन भिखारिन राज लेकर क्या करेगी। उसे तो टुकड़ा चाहिए। मुझे तुमने इस लायक़ समझा, यही मेरे लिये बहुत है। मैं अपने को इस लायक नहीं समझती। सोचो मैं कौन हूँ? एक ग़रीब मुसलमान औरत जो मजदुरी करके अपनी जिन्दगी बसर करती है। मुझमें न वह नफ़ासत है, न वह सलीका; न वह इल्म। मैं सुखदा देवी के क़दमों की बराबरी भी नहीं कर सकती; मेंढकी उड़कर ऊँचे दरख्त पर तो नहीं जा सकती। मेरे कारण आपकी रुसवाई हो, उसके पहले मैं जान दे दूँगी। मैं आपकी जिन्दगी में दाग न लगाऊँगी।

ऐसे अवसर पर हमारे विचार कुछ कवितामय हो जाते हैं। प्रेम की गहराई कविता की वस्तु है और साधारण बोल-चाल में व्यक्त नहीं हो सकती। सकीना जरा दम लेकर बोली--तुमने एक यतीम, ग़रीब लड़की को खाक से उठाकर आसमान पर पहुँचाया, अपने दिल में जगह दी, तो मैं भी जब तक जिऊँगी इस मुहब्बत के चिराग को अपने दिल के खुन से रोशन रखूँगी।

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कर्मभूमि