पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।


सुखदा, तुझे क्या हो गया ? बड़े-बूढ़े दो बात कहें, तो ग़म खाना होता है, कि घर से निकल खड़े होते हैं। क्या इनके साथ तेरी बुद्धि भी भ्रष्ट हो गयी ?

सुखदा ने सारा वृत्तान्त कह सुनाया और इस ढंग से कि रेणुका को भी लाला समरकान्त की ही ज्यादती मालूम हुई। उन्हें अपने धन का धमण्ड है तो उसे लिये बैठे रहें। मरने लगे, तो साथ लेते जायें !

अमर ने कहा--दादा को यह खयाल न होगा, कि ये सब घर से चले जायेंगे।

सुखदा का क्रोध इतनी जल्दी शान्त होने वाला न था। बोली--चलो, उन्होंने साफ कहा, यहाँ तुम्हारा कुछ नहीं है। क्या वह एक दफ़े भी आकर न कह सकते थे, तुम लोग कहाँ जा रहे हो। हम घर से निकले। वह कमरे में बैठे टुकुर-टुकुर देखा किये। बच्चे पर भी उन्हें दया न आई। जब उन्हें इतना घमण्ड है, तो यहाँ क्या आदमी ही नहीं है ! वह अपना महल लेकर रहें, हम अपनी मेहनत-मजूरी कर लेंगे। ऐसा लोभी आदमी तुमने कभी देखा था अम्मा ? बीबी गई, तो उन्हें भी डाँट बतलाई। बेचारी रोती चली आई।

रेणुका ने नैना का हाथ पकड़कर कहा--अच्छा, जो हुआ अच्छा ही हुआ, चलो देर हो रही है। मैं महराजिन से भोजन को कह आई हूँ। खाटें भी निकलबा आई हूँ। लाला का घर न उजड़ता, तो मेरा कैसे बसता।

नीचे प्रकाश हुआ। सिल्लो ने कड़वे तेल का चिराग जला दिया था। रेणुका को यहाँ पहुँचाकर बाजार दौड़ी गयी और चिराग, तेल और एक झाड़ू लाई। चिराग़ जलाकर घर में झाड़ू लगा रही थी।

सूखदा ने बच्चे को रेणुका की गोद में देकर कहा--आज तो क्षमा करो अम्मा, फिर आगे देखा जायगा। लालाजी को यह कहने का मौक़ा क्यों दें कि आख़िर ससुराल भागा। उन्होंने पहले ही तुम्हारे घर का द्वार बन्द कर दिया है। हमें दो-चार दिन यहाँ रहने दो, फिर तुम्हारे पास चले आयेंगे। जरा हम भी तो देख लें, हम अपने बूते पर रह सकते हैं या नहीं।

अमर की नानी मर रही थी। अपने लिए तो उसे चिन्ता न थी। सलीम या डाक्टर के यहाँ चला जायगा। यहाँ सुखदा और नैना दोनों बे-खाट के

११६
कर्मभूमि