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'जाओ, ईश्वर तुम्हें सुखी रखे। अगर कभी किसी चीज़ की जरूरत हो, तो मुझे लिखने में संकोच न करना।'

'मुझे आशा है, मैं आपको कोई कष्ट न दूँगा।'

लालाजी ने सजल नेत्र होकर कहा--चलते-चलते घाव पर नमक न छिड़को, लल्लू ! बाप का हृदय नहीं मानता। कम-से-कम इतना तो करना कि कभी-कभी पत्र लिखते रहना। तुम मेरा मुंह न देखना चाहो लेकिन मुझे कभी-कभी आने-जाने से न रोकना। जहाँ रहो, सुखी रहो, यही मेरा आशीर्वाद है।

कर्मभूमि १३७