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लड़कों के सिवा और किसी के देह पर साबित कपड़े न थे। अमरकान्त कुतूहल से उठ बैठा, मानो कोई तमाशा होनेवाला है।

जो बालक अभी दरी लेकर आया था, आगे बढ़कर बोला--इतने लड़के हैं हमारे गाँव में। दो-तीन नहीं आये, कहते थे वे कान काट देंगे।

अमरकान्त ने उठकर उन सभी को एक कतार में खड़ा किया और एक-एक का नाम पूछा। फिर बोले--तुममें जो रोज़ हाथ मुँह धोता है, अपना हाथ उठाये।

किसी लड़के ने हाथ न उठाया। यह प्रश्न किसी की समझ में न आया।

अमर ने आश्चर्य से कहा--ऐं ! तुममें से कोई रोज हाथ-मुँह नहीं धोता?

सबों ने एक दूसरे की ओर देखा। दरीवाले लड़के ने हाथ उठा दिया। उसे देखते ही दूसरों ने भी हाथ उठा दिये।

अमर ने फिर पूछा--तुममें से कौन-कौन लड़के रोज नहाते हैं ? हाथ उठायें।

पहले किसी ने हाथ न उठाया। फिर एक-एक करके सबों ने हाथ उठा दिये। इसलिए नहीं कि सभी रोज नहाते थे, बल्कि इसलिए कि वह दूसरों से पीछे न रहें।

सलोनी खड़ी थी। बोली--तू तो महीने भर में भी नहीं नहाता रे जंगलिया ! तू क्यों हाथ उठाये हुए है ?

जंगलिया ने अपमानित होकर कहा--तो गूदड़ ही कौन रोज नहाता है। भुलई, पुन्नू, घसीटे, कोई भी तो नहीं नहाता।

सभी एक दूसरे की कलई खोलने लगे।

अमर ने डाँटा-–अच्छा आपस में लड़ो मत। मैं एक बात पूछता हूँ, उसका जवाब दो। रोज मुंह हाथ धोना अच्छी बात है या नहीं ?

सबों ने कहा--अच्छी बात है।

'और नहाना?'

सबों ने कहा--अच्छी बात है।

'मुंह से कहते हो या दिल से?'

'दिल से।'

कर्मभूमि
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