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मैं तुमसे सगाई नहीं करूँगी, तुम्हारी रखेली भी नहीं बनूंगी। तुम मुझे अपनी चेरी समझते रहो, यही मेरे लिये बहुत है।

मुन्नी ने कलसा उठा लिया और कुएँ की ओर चल दी। अमर रमणीहृदय का यह अद्भुत रहस्य देखकर स्तम्भित हो गया।

सहसा मुन्नी ने पुकारा--लाला, ताजा पानी लाई हूँ। एक लोटा लाऊँ ?

पीने की इच्छा होने पर भी अमर ने कहा--अभी तो प्यास नहीं है मुन्नी!


तीन महीने तक अमर ने किसी को खत न लिखा। कहीं बैठने की मुहलत ही न मिली। सकीना का हाल-चाल जानने के लिए हृदय तड़प-तड़पकर रह जाता था। नैना की भी याद आ जाती थी। बेचारी रो-रोकर मरी जाती होगी। बच्चे का हँसता हुआ फूल-सा मुखड़ा याद आता रहता था; पर कहीं अपना पता-ठिकाना हो तब तो खत लिखे ! एक जगह तो रहना नहीं होता था। यहाँ आने के कई दिन बाद उसने तीन खत लिखे--सकीना, सलीम और नैना के नाम। सकीना का पत्र सलीम के लिफ़ाफे में ही बन्द कर दिया था। आज जवाब आ गये हैं। डाकिया अभी दे गया है। अमर गङ्गा-तट पर एकान्त में जाकर इन पत्रों को पढ़ रहा है। वह नहीं चाहता, बीच में कोई बाधा हो, लड़के आ आकर पूछें--किसका खत है।

नैना लिखती है--'भला, आपको इतने दिनों के बाद मेरी याद तो आई। मैं आपको इतना कठोर न समझती थी। आपके बिना इस घर में कैसे रहती हूँ, इसकी आप कल्पना नहीं कर सकते, क्योंकि आप आप हैं, और मैं मैं । साढ़े चार महीने और आपका एक पत्र नहीं, कुछ खबर भी नहीं! आँखों से कितना आँसू निकल गया, कह नहीं सकती। रोने के सिवा आपने और काम ही क्या छोड़ा। आपके बिना मेरा जीवन इतना सूना हो जायगा, मुझे यह न मालूम था।

'आपकी इतने दिनों की चुप्पी का कारण मैं समझती हूँ, पर वह आपका भ्रम है भैया! आप मेरे भाई हैं। संसार आप पर हँसे, सारे देश में आपकी निन्दा हो, पर आप मेरे भाई हैं। आज आप मुसलमान या ईसाई हो जायँ,

कर्मभूमि
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