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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/१७५

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एक चौड़ी छातीवाला युवक बोला--सलाह जो तुम्हारी है, वहीं सबकी है। चौधरी तो तुम हो।

पयाग ने अपने बाप को विचलित होते देख दूसरों को ललकार कर कहा--खड़े मुँह क्या ताकते हो इतने जने तो हो! क्यों नहीं मुन्नी का हाथ पकड़कर हटा देते? मैं गँड़ासा लिये खड़ा हूँ।

मुन्नी ने कोष से कहा--मेरा ही मांस खा जाओगे, तो कौन हरज है? बह भी तो माँस ही है!

और किसी को आगे बढ़ते न देखकर पयाग ने खुद आगे बढ़कर मुन्नी का हाथ पकड़ लिया और उसे वहाँ से घसीटना चाहता था कि काशी ने उसे जोर से धक्का दिया और लाल आँखें करके बोला--भैया, अगर उसकी देह पर हाथ रखा, तो खून हो जायगा--कहे देता हूं। हमारे घर में गऊमांस की गंध तक न जाने पायेगी। आये वहाँ से बड़े वीर बनकर! चौड़ी छातीवाला युवक मध्यस्थ बनकर बोला--मरी गाय के मांस में ऐसा कौन-सा मज़ा रखा है, जिसके लिए सब जने मरे जा रहे हो? गड्ढा खोदकर माँस गाड़ दो, खाल निकाल लो। वह भी जब अमर भैया की सलाह हो। हमको तो उन्हीं की सलाह पर चलना है। उनकी राह पर चलकर हमारा उद्धार हो जायगा। सारी दुनिया हमें इसीलिए तो अछूत समझती है, कि हम दारू-शराब पीते हैं, मुरदा-माँस खाते हैं और चमड़े का काम करते हैं। और हममें क्या बुराई है? दारू-शराब हमने छोड़ ही दी--हमने क्या छोड़ दी, समय ने छुड़वा दी--फिर मुरदा-मांस में क्या रखा है। रहा चमड़े का काम, उसे कोई बुरा नहीं कह सकता, और अगर कोई कह भी तो हमें उसकी परवाह नहीं। चमड़ा बनाना-बेचना बुरा काम नहीं।

गूदड़ ने युवक की ओर आदर की दृष्टि से देखा--तुम लोगों ने भूरे की बात सुन ली। तो यही सबकी सलाह है?

भूरे बोला--अगर किसी को उजर करना हो तो करे।

एक बूढ़े ने कहा--एक तुम्हारे या हमारे छोड़ देने से क्या होता है? सारी बिरादरी तो खाती है।

भूरे ने जवाब दिया--बिरादरी खाती है, विरादरी नीच बनी रहे। अपना-अपना धरम अपने-अपने साथ है।

कर्मभूमि १७१