गूदड़ ने भूरे को संबोधित किया--तुम ठीक कहते हो भूरे! लड़कों का पढ़ाना ही ले लो। पहले कोई भेजता था अपने लड़कों को? मगर जब हमारे लड़के पढ़ने लगे, तो दूसरे गाँवों के लड़के भी आ गये।
काशी बोला--मुरदा-मांस न खाने के अपराध की दंड बिरादरी हमें न देगी। इसका मैं जुम्मा लेता हूँ। देख लेना, आज की बात साँझ तक चारों ओर फैल जायगी; और वह लोग भी यहीं करेंगे। अमर भैया का कितना मान है ! किसकी मजाल है कि उनकी बात को काट दे।
पयाग ने देखा अब दाल न गलेगी, तो सबको धिक्कारकर बोला--अब मेहरियों का राज है, मेहरियाँ जो कुछ न करें वह थोड़ा।
यह कहता हुआ वह गँडा़सा लिये घर चला गया।
गूदड़ लपके हए गंगा की ओर चले और एक गोली के टप्पे से पुकारकर बोले--यहाँ क्या खड़े हो भैया, चलो घर, सब झगड़ा तय हो गया।
अमर विचार-मग्न था। आवाज़ उसके कानों तक न पहुँची।
चौधरी ने और समीप जाकर कहा--यहाँ कब तक खड़े रहोगे भैया?
'नहीं दादा, मुझे यहीं रहने दो। तुम लोग वहाँ काट-कूट करोगे, मुझसे देखा न जायगा। जब तुम फुरसत पा जाओगे, तो मैं आ जाऊँगा।
'बहू' कहती थी, तुम हमारे घर खाने भी नहीं कहते?'
'हाँ दादा, आज तो न खाऊँगा, मुझे कै हो जायगी।'
'लेकिन हमारे यहाँ तो आये दिन यही धन्धा लगा रहता है।'
'दो-चार दिन के बाद मेरी भी आदत पड़ जायगी।'
'तुम हमें मन में राच्छस समझ रहे होगे!'
अमर ने छाती पर हाथ रखकर कहा--नहीं दादा, मैं तो तुम लोगों से कुछ सीखने, तुम्हारी कुछ सेवा करके अपना उद्धार करने आया हूँ। यह तो अपनी-अपनी प्रथा है। चीन एक बहुत बड़ा देश है। वहाँ बहत से आदमी बुद्ध भगवान को मानते हैं। उनके धर्म में किसी जानवर को मारना पाप है। इसलिए वह लोग मरे हुए जानवर ही खाते हैं। कुत्ते, बिल्ली, गीदड़, किसी को भी नहीं छोड़ते। तो क्या वह हमसे नीच हैं? कभी नहीं। हमारे ही देश में कितने ही ब्राह्मण-क्षत्री माँस खाते हैं। वह जीभ के स्वाद के लिए जीवहत्या करते हैं। तुम उनसे तो कहीं अच्छे हो।