पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।


सुखदा के मुँह से यह सनद पाकर, मानो उनका जीवन सफल हो गया। बोले--यह आपकी उदारता है। आपने जो कुछ कर दिखाया और कर रही हैं, वह आप ही कर सकती हैं। अमरकान्त आवेंगे तो उन्हें मालूम होगा कि अब उनके लिए यहाँ स्थान नहीं है। यह साल भर में जो कुछ हो गया, इसकी वह स्वप्न में भी कल्पना न कर सकते थे। यहाँ सेवाश्रम में लड़कों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। अगर यही हाल रहा तो कोई दूसरी जगह लेनी पड़ेगी। अध्यापक कहाँ से आवेंगे, कह नहीं सकता। सभ्य समाज की यह उदासीनता देखकर मुझे तो कभी-कभी बड़ी चिन्ता होने लगती है। जिसे देखिए स्वार्थ में मगन है। जो जितना ही महान् है, उसका स्वार्थ भी उतना ही महान् है। योरप की डेढ़ सौ साल तक उपासना करके हमें यही वरदान मिला है; लेकिन यह सब होने पर भी हमारा भविष्य उज्वल है। मुझे इसमें संदेह नहीं। भारत की आत्मा अभी जीवित है और मुझे विश्वास है, कि वह समय आने में देर नहीं है, जब हम सेवा और त्याग के पुराने आदर्श पर लौट आवेंगे। तब धन हमारे जीवन का ध्येय न होगा। तब हमारा मूल्य धन के काँटे पर न तौला जायगा।

लल्लू ने कुरसी पर चढ़कर मेज़ पर से दावात उठा ली थी और अपने मुँह में कालिमा पोत-पोतकर खुश हो रहा था। नैना ने दौड़कर उसके हाथ से दावात छीन ली और एक धौल जमा दिया। शांतिकुमार ने उठने की असफल चेष्टा करके कहा--क्यों मारती हो नैना, देखो तो कितना महान् पुरुष है, जो अपने मुँह में कालिमा पोतकर भी प्रसन्न होता है, नहीं तो हम अपनी कालिमा को सात परदों के अन्दर छिपाते हैं!

नैना ने बालक को उनकी गोद में देते हुए कहा--तो लीजिए इस महान् पुरुष को आप ही। इसके मारे चैन से बैठना मुश्किल है।

शांतिकुमार ने बालक को छाती से लगा लिया। उस गर्म और गुदगुदे स्पर्श में उनकी आत्मा ने जिस परितृप्ति और माधुर्य का अनुभव किया, वह उनके जीवन में बिलकुल नया था। अमरकान्त से उन्हें जितना स्नेह था, वह जैसे इस छोटे-से रूप में सिमटकर और ठोस और भारी हो गया था। अमर की याद करके उनकी आँखें सजल हो गयीं। अमर ने अपने

२२० कर्मभूमि