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अब उसकी निर्दय क्रीड़ा की शिकायत नहीं करूँगा। कहाँ हूँ, कुछ नहीं जानता; किधर जा रहा हूँ, कुछ नहीं जानता। अब जीवन में कोई भविष्य नहीं है। भविष्य पर विश्वास नहीं रहा । इरादे झूठे साबित हुए, कल्पनाएँ मिथ्या निकलीं। मैं आपसे सत्य कहता हूँ, सुखदा मुझे नचा रही है। उस मायाविनी के हाथों में कठपुतली बना हुआ हूँ। पहले एक रूप दिखाकर उसने मुझे भयभीत कर दिया और अब दूसरा रूप दिखाकर मुझे परास्त कर रही है। कौन उसका वास्तविक रूप है, नहीं जानता । सकीना का जो रूप देखा था, वह भी उसका सच्चा रूप था, नहीं कह सकता। मैं अपने ही विषय में कुछ नहीं जानता। आज क्या हूँ, कल क्या हो जाऊँगा, कुछ नहीं जानता। अतीत दुःखदायी है, भविष्य स्वप्न है। मेरे लिए केवल वर्तमान है।

आपने अपने विषय में मुझसे जो सलाह पूछी है, उसका मैं क्या जवाब दूं आप मुझसे कहीं बुद्धिमान् हैं। मेरा तो विचार है कि सेवा-व्रतधारियों को जाति से गुजारा-केवल गुजारा लेने का अधिकार है। यदि वह इस स्वार्थ को मिटा सकें, तो और भी अच्छा।'

शांतिकुमार ने असंतोष के भाव से पत्र को मेज़ पर रख दिया। जिस विषय पर उन्होंने विशेष रूप से राय पूछी थी, उसे केवल दो शब्दों में उड़ा दिया।

सहसा उन्होंने सलीम से पूछा-तुम्हारे पास भी कोई खत आया है?

'जी हाँ इसके साथ ही आया था।'

'कुछ मेरे वारे में लिखा था?'

'कोई खास बात तो न थी, बस, यही कि मुल्क को सच्चे मिशनरियों की जरूरत है और खुदा जाने क्या-क्या। मैंने खत को आखीर तक पढ़ा भी नहीं। इस किस्म की बातों को पागलपन समझता हूँ। मिशनरी होने का मतलब तो मैं यही समझता हूँ कि हमारी ज़िन्दगी खैरात पर बसर हो।

डाक्टर साहब ने गम्भीर स्वर में कहा-जिंदगी खैरात पर बसर होना इससे कहीं अच्छा है कि वह जब्र पर बसर हो। गवर्नमेण्ट तो कोई जरूरी चीज़ नहीं। पढ़े-लिखे आदमियों ने ग़रीबों को दबाये रखने के लिए एक

कर्मभूमि
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