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धन देनेवालों की कमी नहीं है, लेनेवालों की कमी है। आदमी यही चाहता है, कि धन सुपात्रों को दे, जो दाता के इच्छानुसार खर्च करें; यह नहीं कि मुफ्त का धन पाकर उड़ाना शुरू कर दें। दिखाने को दाता के इच्छानसार थोड़ा-बहुत खर्च कर दिया, बाकी किसी-न-किसी बहाने से घर में रख लिया।

यह कहते हुए उसने मुसकराकर शांतिकुमार से पूछा- आप तो धोखा न देंगे?

शांतिकुमार को यह प्रश्न, हँसकर पूछे जाने पर भी, बुरा मालूम हुआ- मेरी नियत क्या होगी, यह मैं खुद नहीं जानता । आप को मुझ पर इतना विश्वास कर लेने का कोई कारण भी नहीं है।

सुखदा ने बात सँभाली- यह बात नहीं है डाक्टर साहब ! अम्मा ने तो हँसी की थी।

'विष मधु के साथ भी अपना असर करता है।'

'यह तो बुरा मानने की बात न थी ?'

'मैं बुरा नहीं मानता । अभी दस-पाँच वर्ष मेरी परीक्षा होने दीजिए। अभी मैं इतने बड़े विश्वास के योग्य नहीं हुआ।

रेणुका ने परास्त होकर कहा- अच्छा साहब, मैं अपना प्रश्न वापस लेती हूँ। आप कल मेरे घर आइएगा। मैं मोटर भेज दूँगी। ट्रस्ट बनना पहला काम है। मुझे अब कुछ नहीं पूछना है। आपके ऊपर मुझे पूरा विश्वास है ।

डाक्टर साहब ने धन्यवाद देते हुए कहा- मैं आपके विश्वास को बनाये रखने की चेष्टा करूँगा।

रेणुका- मैं चाहती हूँ, जल्द ही इस काम को कर डालूँ। फिर नैना का विवाह आ पड़ेगा, तो महीनों फुरसत न मिलेगी।

शांतिकुमार ने जैसे सिहरकर कहा- अच्छा, नैना देवी का विवाह होने वाला है ? यह तो बड़ी शुभ सूचना है। मैं कल ही आपसे मिलकर सारी बातें तय कर लूंगा। अमर को भी सूचना दे दूँ?

सुखदा ने कठोर स्वर में कहा- कोई ज़रूरत नहीं।

रेणुका बोली- नहीं, आप उनको सूचना दे दीजिए। शायद आयें। मुझे तो आशा है, ज़रूर आयेंगे।

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कर्मभूमि