'नहीं आपके हाथ जोड़ती हूँ। आपने उनसे कुछ कहा, तो नैना के सिर जायगी।
'मैं उससे लड़ने नहीं जाऊँगा। मैं उसकी खुशामद करने जाऊँगा! यह कला जानता नहीं; पर नैना के लिए अपनी आत्मा की हत्या करने में भी मुझे संकोच नहीं है। मैं उसे दुखी नहीं देख सकता। निःस्वार्थ सेवा की वह देवी अगर मेरे सामने दुःख सहे, तो मेरे जीने को धिक्कार है।'
शांतिकुमार जल्दी से बाहर निकल आये। आँसुओं का बेग अब रोके न रुकता था।
९
सुखदा सड़क पर मोटर से उतरकर सकीना का घर खोजने लगी। पर इधर से उधर तक दो-तीन चक्कर लगा आयी, कहीं वह घर न मिला। जहाँ वह मकान होना चाहिए था, वहाँ अब एक नया कमरा था, जिस पर कलई पुती हुई थी! वह कच्ची दीवार और सड़ा हुआ टाट का परदा कहीं न था। आखिर उसने एक आदमी से पूछा, तब मालूम हुआ कि जिसे वह नया कमरा समझ रही थी, वह सकीना के मकान का दरवाजा है। उसने आवाज़ दी और एक क्षण में द्वार खुल गया। सुखदा ने देखा, वह एक साफ़-सुथरा छोटा-सा कमरा है, जिसमें दो-तीन मोढ़े रखे हुए हैं। सकीना ने एक मोढ़े को बढ़ाकर पूछा-----आपको मकान तलाश करना पड़ा होगा। यह नया कमरा बन जाने से पता नहीं चलता।
सुखदा ने उसके पीले सूखे मुंह की ओर देखते हुए कहा- हाँ, मैंने दो-तीन चक्कर लगाये। अब यह घर कहलाने लायक हो गया; मगर तुम्हारी यह क्या हालत है? बिल्कुल पहचानी ही नहीं जाती।
सकीना ने हँसने की चेष्टा करके कहा-मै तो मोटी-ताजी कभी न थी।
'इस वक्त तो पहले से भी उतरी हुई हो।'
सहसा पठानिन आ गयी और यह प्रश्न सुनकर बोली—महीने से बुखार आ रहा है बेटी, लेकिन दवा नहीं खाती। कौन कहे, मुझसे तो बोल-चाल बन्द है। अल्लाह जानता है, तुम्हारी बड़ी याद आती थी