शरीफ़ आदमी यों मुहब्बत करे, यह मुझे ले उड़ा। मैं वह नेमत पाकर दीवानी हो गई। जब वह अपना तन-मन सब मुझ पर निसार कर रहे थे, तो मैं काठ की पुतली तो न थी। मुझमें ऐसी क्या खूबी उन्होंने देखी, यह मैं नहीं जानती। उनकी बातों से यही मालूम होता था कि वह आपसे खुश नहीं हैं। बहन, मैं इस वक्त आपसे साफ़-साफ़ बातें कर रही हूँ, मुआफ कीजिएगा। आपकी तरफ़ से उन्हें कुछ मलाल जरूर था और जैसे फ़ाका करने के बाद अमीर आदमी भी ज़रदा पुलाव भूलकर सत्तू पर टूट पड़ता है, उसी तरह उनका दिल आपकी तरफ से मायूस होकर मेरी तरफ़ लपका। वह मुहब्बत के भूखे थे। मुहब्बत के लिए उनकी रूह तड़पती रहती थी। शायद यह नेमत उन्हें कभी मयस्सर ही न हुई। वह नुमाइश से खुश होनेवाले आदमी नहीं हैं। वह दिल और जान से किसी के हो जाना चाहते है और उसे भी दिल और जान से अपना कर लेना चाहते हैं। मुझे अब अफ़सोस हो रहा है कि मैं उनके साथ चली क्यों न गयी। बेचारे सत्तू पर गिरे तो वह भी सामने से खींच लिया गया। आप अब भी उनके दिल पर कब्जा कर सकती हैं। बस, एक मुहब्बत में डूबा हुआ खत लिख दीजिए। वह दूसरे ही दिन दौड़े हुए आयेंगे। मैंने एक हीरा पाया है और जब तक कोई उसे मेरे हाथों से छीन न ले, उसे छोड़ नहीं सकती। महज़ यह खयाल कि मेरे पास हीरा है मेरे दिल को हमेशा मजबूत और खुश बनाये रहेगा।
वह लपक कर घर में गयी और एक इत्र में बसा हुआ लिफ़ाफ़ा लाकर सुखदा के हाथ पर रखती हुई बोली-यह मियाँ मुहम्मद सलीम का खत है। आप पढ़ सकती है कोई ऐसी बात नहीं है, वह भी मुझ पर आशिक हो गये हैं। पहले अपने खिदमतगार के साथ मेरा निकाह करा देना चाहते थे। अब खुद निकाह करना चाहते हैं। पहले चाहे जो कुछ रहे हों; पर अब उनमें वह छिछोरापन नहीं है। उनकी मामी उनका बयान किया करती हैं। मेरी निस्बत भी उन्हें जो कुछ मालूम हुआ होगा, मामा ही से मालूम हुआ होगा। मैंने उन्हें दो-चार बार अपने दरवाजे पर ताकतें झाँकते देखा है। सुनती हूँ, किसी ऊँचे ओहदे पर आ गये हैं। मेरी तो जैसे तकदीर खुल गयी; लेकिन मुहब्बत की जिस नाजुक जंजीर में बँधी हुई हैं, उसे बड़ी से बड़ी ताकत भी नहीं तोड़ सकती। अब तो जब तक