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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/२५१

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मुझे मालूम न हो जायगा कि बाबूजी ने मुझे दिल से निकाल दिया, तब तक उन्हीं की हूँ, और उनके दिल से निकाली जाने पर भी इस मुहब्बत को हमेशा याद रखूंगी। ऐसी पाक मुहब्बत का एक लमहा इन्सान को उम्र-भर मतवाला रखने के लिए काफी है। मैंने इसी मज़मून का जवाब लिख दिया है। कल ही तो उनके जाने की तारीख है। मेरा खत पढ़कर रोने लगे। अब यह ठान ली है कि या तो मुझसे शादी करेंगे या बिन ब्याहे रहेंगे! उसी जिले में तो बाबूजी भी हैं। दोनों दोस्तों में वहीं फैसला होगा। इसीलिए इतनी जल्द भागे जा रहे हैं।

बुढ़िया एक पत्ते की गिलोरी में पान लेकर आ गयी। सूखदान निष्क्रिय भाव से पान लेकर खा लिया और फिर विचारों में डूब गयी। इस दरिद्र ने उसे आज पूर्ण रूप से परास्त कर दिया था। आज वह अपनी विशाल सम्पत्ति और महती कुलीनता के साथ उसके सामने भिखारिन सी बैठी हुई थी। आज उसका मन अपना अपराध स्वीकार करता हुआ जान पड़ा। अब तक उसने इस तर्क से मन को समझाया था कि पुरुष छिछोरे और हरजाई होते ही हैं, इस युवती के हाव-भाव, हास-विलास ने उन्हें मुग्ध कर लिया। आज उसे ज्ञात हुआ कि यहाँ न हाव-भाव है, न हास-विलास है, न जादू-भरी चितवन है। यह तो एक शान्त, करुण संगीत है, जिसका रस वहीं ले सकते हैं , जिनके पास हृदय है। लंपटों और विलासियों को जिस प्रकार के चटपटे, उत्तेजक गाने में आनन्द आता है, वह यहाँ नहीं है। उस उदारता के साथ, जो द्वेष की आग से निकलकर खरी हो गयी थी, उसने सकीना की गरदन में बाँहें डाल दी और बोली--बहन, आज तुम्हारी बातों ने मेरे दिल का बोझ हलका कर दिया। संभव है, तुमने मेरे ऊपर जो इलजाम लगाया है, वह ठीक हो। तुम्हारी तरफ़ से मेरा दिल आज साफ़ हो गया। मेरा यही कहना है। बाबूजी को अगर मुझसे शिकायत हुई थी, तो उन्हें मुझसे कहना चाहिए था। मैं भी ईश्वर से कहती हूँ कि अपनी जान में मैंने उन्हें कभी असन्तुष्ट नहीं किया। हाँ, अब मुझे कुछ ऐसी बातें याद आ रही है, जिन्हें उन्होंने मेरी निठुरता समझा होगा; पर उन्होंने मेरा जो अपमान किया, उसे मैं अब भी क्षमा नहीं कर सकती। उन्हें प्रेम की भूख थी, तो मुझे प्रेम की भूख कुछ कम न थी। मुझसे वह जो

कर्मभूमि
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