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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/२७८

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श्यक अशिष्टता से उसे घृणा थी और यथासाध्य रिश्वत न लेता था। पूछा--कहिए, क्या राय हुई?

समरकान्त ने हाथ बाँधकर कहा--कुछ नहीं सुनती हुजूर, समझाकर हार गया। और मैं उसे क्या समझाऊँ; मुझे वह समझती ही क्या है। अब तो आप लोगों की दया का भरोसा है। मुझसे जो खिदमत कहिए, उसके लिए हाज़िर हूँ। जेलर साहब से तो आपका रब्त-जब्त होगा ही, उन्हें भी समझा दीजिएगा। कोई तकलीफ न होने पाये। मैं किसी तरह बाहर नहीं हूँ। नाजुक मिजाज औरत है, हुजूर।

डिप्टी ने सेठजी को बराबर की कुरसी पर बैठाते हुए कहा--सेठजी, यह बातें उन मुआमलों में चलती हैं जहाँ कोई काम बुरी नीयत से किया जाता है। देवीजी अपने लिए कुछ नहीं कर रही है। उनका इरादा नेक है, वह हमारे ग़रीब भाइयों के हक के लिए लड़ रही हैं। उन्हें किसी तरह की तकलीफ न होगी। नौकरी से मजबूर हूँ; वरना यह देवियां तो इस लायक है कि उनके कदमों पर सिर रखें। खुदा ने सारी दुनिया की नेमतें दे रखी हैं; मगर उन सब पर लात मार दी और हक के लिए सब कुछ झेलने को तैयार है। इसके लिए गुर्दा चाहिए साहब! मामूली बात नहीं है।

सेठजी ने सन्दूक से दस अशर्फियां निकाली और चुपके से डिप्टी की जेब में डालते हुए बोले--यह बच्चों के मिठाई खाने के लिए है।

डिप्टी ने अशर्फियां जेब से निकालकर मेज पर रख दी और बोला--आप पुलिसवालों को बिल्कुल जानवर ही समझते हैं क्या सेठजी? क्या लाल पगड़ी सिर पर रखना ही इन्सानियत का खुन करना है। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि देवीजी को तकलीफ न होने पावेगी। तकलीफ उन्हें दी जाती है जो दूसरों को तकलीफ देते हैं। जो गरीबों के हक़ के लिए अपनी ज़िन्दगी कुरबान कर दे, उसे अगर कोई सताये, तो वह इन्सान नहीं, हैवान भी नहीं, शैतान है। हमारे सीगे में ऐसे आदमी हैं और कसरत से हैं। मैं खुद फरिश्ता नहीं हूँ; लेकिन ऐसे मुआमले में मैं पान तक खाना हराम समझता हूँ। मन्दिर वाले मुआमले में देवीजी जिस दिलेरी से मैदान में आकर गोलियों के सामने खड़ी हो गयी थीं, वह उन्हीं का काम था।

सामने सड़क पर जनता का समूह प्रतिक्षण बढ़ता जाता था। बार-बार

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कर्मभूमि