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आज भी परदा न रखूँगा। सकीना प्यार करने की चीज नहीं, पूजने की चीज है। कम-से-कम मुझे बह ऐसी ही मालूम होती है। मैं कसम तो नहीं खाता कि उससे शादी हो जाने पर मैं कण्ठी-माला पहन लूंगा। लेकिन इतना जानता हूँ कि उसे पाकर मैं ज़िन्दगी में कुछ कर सकूँगा। अब तक मेरी ज़िन्दगी सैलानीपन में गुजरी है। वह मेरी बहती हुई नाव का लंगर होगी। इस लंगर के बगैर नहीं जानता मेरो नाव किस भँवर में पड़ जायेगी। मेरे लिए ऐसी औरत की ज़रूरत है, जो मुझ पर हुकमत करे, मेरी लगाम को खींचती रहे।

अमर को अपना जीवन इसलिए भार था कि वह अपनी स्त्री पर शासन न कर सकता था। सलीम ऐसी स्त्री चाहता था, जो उस पर शासन करे; और मजा यह था कि दोनों एक ही सुन्दरी में मनोनीत लक्षण देख रहे थे।

अमर ने कुतूहल भाव से कहा—मैं तो समझता हूँ, सकीना में यह बात नहीं है, जो तुम चाहते हो।

सलीम जैसे गहराई में डूबकर बोला—तुम्हारे लिए नहीं है मगर मेरे लिए है! वह तुम्हारी पूजा करती है, मैं उसकी पूजा करता हूँ।

इसके बाद कोई दो-ढाई बजे रात तक दोनों में इधर-उधर की बातें होती रहीं। सलीम ने उस नये आन्दोलन की भी चर्चा की, जो उसके सामने शुरू हो चुका था और यह भी कहा कि उसके सफल होने की आशा नहीं है। संभव है, मुआमला तूल खींचे।

अमर ने विस्मय के साथ कहा—तब तो कहो, सुखदा ने वहाँ नयी जान डाल दी।

'तुम्हारी सास ने अपनी सारी जायदाद सेवाश्रम के नाम वक्फ़ कर दी।'

'अच्छा!'

'और तुम्हारे पिदर बुजुर्गवार भी अब कौमी कामों में शरीक होने लगे हैं।

'तब तो वहाँ पूरा इनक़लाब हो गया!'

सलीम तो सो गया, लेकिन अमर दिन-भर का थका होने पर भी नींद को न बुला सका। वह जिन बातों की कल्पना भी न कर सकता था, वह सुखदा के हाथों पूरी हो गयीं। मगर कुछ भी हो, वही अमीरी, जरा बदली

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कर्मभूमी