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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/३१३

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स्वामी पर वार चल जाय--मुझे तो उनसे कोई शिकायत नहीं है, उन्हें अख़तियार है, मुझे जितना चाहें बदनाम करें।

ग़ज़नवी ने सलीम से कहा--तुम नोट कर लो मि० सलीम। कल हल्के के थानेदार को लिख दो, इस स्वामी की ख़बर ले। बस, अब सरकारी काम ख़त्म। मैंने सुना है मि० अमर, कि आप औरतों को वश में करने का कोई मंत्र जानते हैं।

अमर ने सलीम की गरदन पकड़ कर कहा--तुमने मुझे बदनाम किया होगा।

सलीम बोला--तुम्हें तुम्हारी हरकतें बदनाम कर रही हैं, मैं क्यों करने लगा।

ग़ज़नवी ने बाँकपन के साथ कहा--तुम्हारी बीबी गजब की दिलेर औरत है भई! आजकल म्युनिसिपैलिटी से उनकी ज़ोर-आज़माई है और मझे यकीन है बोर्ड को झुकना पड़ेगा। मगर भई, मेरी बीवी ऐसी होती, तो मैं फ़कीर हो जाता। वल्लाह!

अमर ने हँसकर कहा--क्यों, आपको तो और खुश होना चाहिए था।

ग़ज़नवी--जी हाँ! वह तो जनाब का दिल ही जानता होगा।

सलीम--उन्हीं के खौफ़ से तो यह भागे हुए हैं।

ग़ज़नवी--यहाँ कोई जलसा करके उन्हें बुलाना चाहिए।

सलीम--क्यों बैठे-बिठाये ज़हमत मोल लीजिएगा। वह आई और शहर में आग लगी, हमें बंगलो में निकलना पड़ा।

ग़ज़नवी--अजी, यह तो एक दिन होना ही है। यह अमीरों की हुकूमत अब थोड़े दिनों की मेहमान है। इस मुल्क में अंग्रेजों का राज है; इसलिए, हममें जो अमीर हैं और जो कुदरती तौर पर अमीरों की तरफ खड़े होते, वह भी ग़रीबों की तरफ खड़े होने में खुश है क्योंकि ग़रीबों के साथ इन्हें कम-से-कम इज्जत मिलेगी, उधर तो यह डौल भी नहीं है। मैं अपने को इसी जमाअत में समझता हूँ।

तीनों मित्रों में बड़ी रात तक बेतकल्लुफी से बातें होती रहीं। सलीम ने अमर को पहले ही खूब तारीफ कर दी थी। इसलिए उसकी गँवारू सूरत होने पर भी ग़ज़नवी बराबरी के भाव से मिला। सलीम के लिए हुकूमत नयी

कर्मभूमि
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