चीज़ थी। अपने नये जूते की तरह उसे कीचड़ और पानी से बचाता था। ग़ज़नवी हुकूमत का आदी हो चुका था और जानता था कि पाँव नये जूते से कहीं ज्यादा कीमती चीज़ है। रमणी-चर्चा उसके कुतूहल, आनन्द और मनोरंजन का मुख्य विषय था। क्वाँरों की रसिकता बहुत धीरे-धीरे सूखने वाली वस्तु है। उनकी अतृप्त लालसा प्रायः रसिकता के रूप में प्रगट होती है।
अमर ने ग़ज़नवी से पूछा--आपने शादी क्यों नहीं की? मेरे एक मित्र प्रोफेसर डाक्टर शांतिकुमार है, वह भी शादी नहीं करते। आप लोग औरतों से डरते होंगे।
ग़ज़नवी ने कुछ याद कर के कहा--शांतिकुमार वही तो हैं, खूबसूरत से, गोरे-चिट्टे, गठे हुए बदन के आदमी! अजी, वह तो मेरे साथ पढ़ता था यार। हम दोनों आक्सफोर्ड में थे। मैंने लिटरेचर लिया था, उसने पोलिटिकल फिलासोफी ली थी। मैं उसे खूब बनाया करता था। युनिवर्सिटी में है न? अक्सर उसकी याद आती थी।
सलीम ने उनके इस्तीफे, ट्रस्ट और नगर-कार्य का ज़िक्र किया।
ग़ज़नवी ने गर्दन हिलायी, मानो कोई रहस्य पा गया है--तो यह कहिए, आप लोग उनके शागिर्द है। हम दोनों में अक्सर शादी के मसले पर बातें होती थीं। मुझे तो डाक्टरों ने मना किया था; क्योंकि उस वक्त मुझ में टी० बी० की कुछ अलामतें नजर आ रही थीं। जवान बेवा छोड़ जाने के खयाल से मेरी रूह काँपती थी। तबसे मेरी गुज़रान तीर-तुक्के पर ही है। शांतिकुमार को तो कौमी खिदमत और जाने क्या-क्या खब्त था; मगर ताज्जुब यह कि अभी तक उस ख़ब्त ने उसका गला नहीं छोड़ा। मैं समझता हूँ, अब उसकी हिम्मत न पड़ती होगी। मेरे ही हमसिन तो थे। ज़रा उनका पता तो बताना, मैं उन्हें यहाँ आने की दावत दूंगा।
सलीम ने सिर हिलाया--उन्हें फुरसत कहाँ। मैंने बुलाया था, नहीं आये।
ग़ज़नवी मुसकराये--तुमने निज के तौर पर बुलाया होगा। किसी इंस्टिट्यूशन की तरफ से बुलाओ और कुछ चन्दा करा देने का वादा लो, फिर देखो, चारों हाथ-पाँव से दौड़े आते हैं या नहीं। इन कौमी खादिमों की जान चन्दा है, ईमान चन्दा है और शायद खुदा भी चन्दा है। जिसे देखो,