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'ऐसा काम ही क्यों किया जाय, जिसका अन्त लज्जा और अपमान हो। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, मुझे बड़ी निराशा हुई।'

'इसका अर्थ यह है, कि आप इस आन्दोलन के नायक बनने के योग्य नहीं हैं। नेता में आत्मविश्वास, साहस और धैर्य, ये मुख्य लक्षण हैं।

मुन्नी शर्बत बनाकर लाई। आत्मानन्द ने कमण्डल भर लिया और एक साँस में चढ़ा गये। अमरकान्त एक कटोरे से ज्यादा न पी सका।

आत्मानन्द ने मुँह चिढ़ाकर कहा---बस! फिर भी आप अपने को मनुष्य कहते हैं।

अमर ने जवाब दिया--बहुत खाना पशुओं का काम है।

'जो खा नहीं सकता वह काम क्या करेगा।'

'नहीं, जो कम खाता है, वही काम करता है, पेटू के लिए सबसे बड़ा काम भोजन पचाना है।'

सलोनी कल से बीमार थी। अमर उसे देखने चला था, कि मदरसे के सामने ही मोटर आते देखकर रुक गया। शायद इस गाँव में मोटर पहली बार आई है। वह सोच रहा था, किसका मोटर है, कि सलीम उसमें से उतर पड़ा। अमर ने लपककर हाथ मिलाया--कोई ज़रूरी काम था, मुझे क्यों न बुला लिया?

दोनों आदमी मदरसे में आये। अमर ने एक खाट लाकर डाल दी और बोला--तुम्हारी क्या खातिर करूँ। यहाँ तो फकीरों की हालत है। शर्बत बनाऊँ?

सलीम ने सिगार जलाते हुए कहा--नहीं, कोई तकल्लुफ नहीं। मि० गजनवी तुमसे किसी मुआमले में सलाह करना चाहते हैं। मैं आज ही जा रहा हूँ। सोचा तुम्हें भी लेता चलूं। तुमने तो कल आग लगा ही दी। अब तहक़ीक़ात से क्या फायदा होगा। वह तो बेकार हो गयीं।

अमर ने कुछ झिझकते हुए कहा---महन्तजी ने मजबूर कर दिया। क्या करता।

सलीम ने दोस्ती की आड़ ली---मगर इतना तो सोचते कि यह मेरा इलाका है और यहाँ की सारी जिम्मेदारी मुझ पर है। मैंने सड़क के किनारे अक्सर गाँवों में लोगों के जमाव देखे। कहीं-कहीं तो मेरी मोटर पर पत्थर भी कर्मभूमि

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