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अमर ने प्रसन्न मुख से कहा--बिल्कुल नहीं। मैं तुम्हें अपना वही पुराना दोस्त समझ रहा हूँ। उसूलों की लड़ाई हमेशा होती रही है और होता रहेगी! दोस्ती में इससे फ़र्क नहीं आता।

सलीम ने अपनी सफ़ाई दी--भाई, इन्सान इन्सान है, दो मुखालिफ गिरोहों में आकर दिल में कीना या मलाल पैदा हो जाय, तो ताज्जुब नहीं। पहले डी० एस० पी० को भेजने की सलाह थी; पर मैंने इसे मुनासिव न समझा।

'इसके लिए मैं तुम्हारा बड़ा एहसानमन्द हूँ। मेरे ऊपर कोई मुकदमा चलाया जायगा?'

'हाँ तुम्हारी तकरीरों की रिपोर्ट मौजूद है, और शहादतें भी जमा हो गयी है। तुम्हारा क्या खयाल है, तुम्हारी गिरफ्तारी से यह शोरिश दब जायगी या नहीं?'

'कुछ कह नहीं सकता। अगर मेरी गिरफ्तारी या सज़ा से दब जाय, तो इसका दब जाना ही अच्छा।'

उसने एक क्षण के बाद फिर कहा--रिआया को मालूम है कि उनके क्या-क्या हक़ हैं। यह भी मालूम है कि हकों की हिफ़ाज़त के लिए कुरबानियाँ करनी पड़ती हैं। मेरा फ़र्ज़ यहीं तक ख़त्म हो गया। अब वह जानें और उनका काम जाने। मुमकिन है, सख्तियों से दब जायँ, मुमकिन है, न दबें; लेकिन दबें या उठे, उन्हें चोट ज़रूर लगी है। रिआया का दब जाना, किसी सरकार की कामयाबी की दलील नहीं है।

मोटर के जाते ही सत्य मुन्नी के सामने चमक उठा। वह आवेश में चिल्ला उठी--लाला पकड़ गये! और उसी आवेश में मोटर के पीछे दौड़ी। चिल्लाती जाती थी--लाला पकड़ गये।

वर्षाकाल में किसानों की हार में बहुत काम नहीं होता। अधिकतर लोग घरों पर होते हैं। मुन्नी की आवाज मानो खतरे का बिगुल थी। दम-के-दम में सारे गाँव में यह आवाज़ गूँज उठी--भैया पकड़ गये!

स्त्रियाँ घरों में से निकल पड़ी--पकड़ गये!

क्षण-भर में सारा गाँव जमा हो गया और सड़क की तरफ दौड़ा। मोटर घुमकर सड़क से जा रही थी। पगडंडियों का एक सीधा रास्ता था। लोगों

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कर्मभूमि