ने अनुमान किया, अभी इस रास्ते मोटर पकड़ी जा सकती है। सब उसी रास्ते दौड़े।
काशी--मरना तो एक दिन है ही।
मुन्नी ने कहा--पकड़ना है, तो सबको पकड़ें। ले चलें सबको।
पयाग बोला---सरकार का काम है चोर बदमाशों को पकड़ना या ऐसो को जो दूसरों के लिए जान लड़ा रहे हैं? वह देखो मोटर आ रही है। बस, सब रास्ते में खड़े हो जाओ। कोई न हटना, चिल्लाने दो।
सलीम मोटर रोकता हुआ बोला--अब कहो भाई, निकालूँ पिस्तौल?
अमर ने उसका हाथ पकड़कर कहा--नहीं-नहीं, मैं इन्हें समझाये देता हूँ।
'मझे पुलिस के दो-चार आदमियों को साथ ले लेना था।'
"घबड़ाओ मत, पहले मैं मरूँगा, फिर तुम्हारे ऊपर कोई हाथ उठायेगा।'
अमर ने तुरन्त मोटर से सिर निकालकर कहा--बहनो और भाइयो, अब मझे विदा कीजिए। आप लोगों के सत्संग में मुझे जितना स्नेह और सुख मिला, उसे मैं कभी भूल नहीं सकता। मैं परदेशी मुसाफिर था। आपने मुझे स्थान दिया, आदर दिया, प्रेम दिया। मुझसे भी जो कुछ सेवा हो सकी, वह मैंने की। अगर मुझसे कुछ भूल-चूक हुई हो, तो क्षमा करना। जिस काम का बीड़ा उठाया है, उसे छोड़ना मत, यही मेरी याचना है। सब काम ज्यों-का-त्यों होता रहे, यही सबसे बड़ा उपहार है, जो आप मुझे दे सकते हैं। प्यारे बालको, मैं जा रहा हूँ, लेकिन मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा।
काशी ने कहा--भैया, हम सब तुम्हारे साथ चलने को तैयार हैं।
अमर ने मुस्कुराकर उत्तर दिया---नेवता तो मझे मिला है, तुम लोग कैसे जाओगे?
किसी के पास इसका जवाब न था। भैया बात ही ऐसी कहते हैं कि किसी से उसका जवाब नहीं बन पड़ता।
मुन्नी सबसे पीछे खड़ी थी, उसकी आँखें सजल थीं। इस दशा में अमर के सामने कैसे जाय। हृदय में जिस दीपक को जलाये, वह अपने अँधेरे जीवन