यह आपके मित्रों का हाल है। अब आँखें खुली होंगी। मेरा क्या बिगड़ा आप ठोकरें खा रहे हैं। अब जेल में चक्की पीस रहे होंगे। गये थे गरीबों की सेवा करने। यह उसी का उपहार है। मैं तो ऐसे मित्र को गोली मार देता। गिरफ्तार तक हुए; पर मुझे पत्र न लिखा। उसके हिसाब से तो मैं मर गया; मगर बुड्ढा अभी मरने का नाम नहीं लेता, चैन से खाता है और सोता है। किसी के मनाने से नहीं मरा जाता। ज़रा यह मुटमरदी देखो कि घर में किसी को खबर तक न दी। मैं दुश्मन था, नैना तो दुश्मन न थी, शांतिकुमार तो दुश्मन न थे। यहाँ से कोई जाकर मुकदमे की पैरवी करता, तो ए०,बी० कोई दर्जा तो मिल जाता। नहीं मामूली कैदियों की तरह पड़े हुए हैं। आप रोयेंगे, मेरा क्या बिगड़ता है।
सुखदा कातर कंठ से बोली---आप अबसे क्यों नहीं चले जाते।
समरकान्त ने नाक सिकोड़कर कहा---मैं क्यों जाऊँ? अपने कर्मों का फल भोगे। वह लड़की जो थी, सकीना, उसकी शादी की बात-चीत उसी दुष्ट सलीम से हो रही है, जिसने लालाजी को गिरफ्तार किया है। अब आँखें खुली होंगी।
सुखदा ने सहृदयता से भरे हुए स्वर में कहा---आप तो उन्हें कोस रहे हैं दादा! वास्तव में दोष उनका न था। सरासर मेरा अपराध था। उनका सा तपस्वी परुष मुझ जैसी विलासिनी के साथ कैसे प्रसन्न रह सकता था; बल्कि यों कहें कि दोष न मेरा था, न आपका, न उनका, सारा विष लक्ष्मी ने बोया। आपके घर में उनके लिए स्थान न था। आप उनसे बराबर खिंचे रहते थे। मैं भी उसी जलवायु में पली थी। उन्हें न पहचान सकी। वह अच्छा या बुरा जो कुछ करते थे, घर में उनका विरोध होता था। बात-बात पर उनका अपमान किया जाता था। ऐसी दशा में कोई भी सन्तुष्ट न रह सकता था। मैंने यहाँ एकान्त में इस प्रश्न पर ख़ूब विचार किया है और मुझे अपना दोष स्वीकार करने में लेशमात्र भी संकोच नहीं है। आप एक क्षण भी यहाँ न ठहरें। वहाँ जाकर अधिकारियों से मिलें, सलीम से मिलें और उनके लिए जो कुछ हो सके, करें। हमने उनको विशाल तपस्वी आत्मा को भोग के बन्धनों से बाँधकर रखना चाहा था। आकाश में उड़ने वाले पक्षी को पिंजरे में बन्द करना चाहते थे। जब पक्षी पिंजरे को तोड़कर उड़ गया, तो मैने