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सहसा एक ठिगने क़ैदी ने कहा---तुम लोग समझते हो, सबेरे तक उसे खबर न हो जायगी?

अमर ने पूछा---ख़बर कैसे होगी? यहाँ ऐसा कौन है, जो उसे खबर दे दे?

ठिगने क़ैदी ने दायें-बायें आँखें घुमाकर कहा---खबर देनेवाले न जाने कहाँ से निकल आते हैं भैया। किसी के माथे पर तो कुछ लिखा नहीं, कौन जाने हमीं में से कोई जाकर इत्तला कर दे। रोज ही तो लोगों को मुखबिर बनते देखते हो। वही लोग जो अगुआ होते हैं, अवसर पड़ने पर सरकारी गवाह बन जाते हैं। अगर कुछ करना है, तो अभी कर डालो। दिन को वारदात करोगे सब-के-सब पकड़ लिये जाओगे। पाँच-पाँच साल की सज़ा ठुक जायगी।

अमर ने सन्देह के स्वर में पूछा---लेकिन इस वक्त तो वह अपने क्वार्टर में सो रहा होगा?

ठिगने क़ैदी ने राह बताई यह हमारा काम है भैया, तुम क्या जानो।

सबों ने मुँह मोड़कर कनफुसकियों में बातें शुरू की। फिर पाँचो आदमी खड़े हो गए।

ठिगने क़ैदी ने कहा---हममें से जो फूटे, उसे गऊ-हत्या!

यह कहकर उसने बड़े ज़ोर से हाय, हाय करना शुरू किया। और भी कई आदमी चीखने चिल्लाने लगे। एक क्षण में बार्डर ने द्वार पर आकर पूछा---तुम लोग क्यों शोर कर रहे हो! क्या बात है?

ठिगने क़ैदी ने कहा---बात क्या है, काले खाँ की हालत खराब है। जाकर जेलर साहब को बुला लाओ, चटपट।

वार्डर बोला—वाह बे! चुपचाप पड़ा रह! बड़ा नवाब का बेटा बना है।

'हम कहते हैं जाकर उन्हें भेज दो, नहीं ठीक न होगा।'

काले खाँ ने आँखें खोलीं और क्षीण स्वर में बोला---क्यों चिल्लाते हो यारो, मैं अभी मरा नहीं हूँ। जान पड़ता है, पीठ की हड्डी में चोट है।

ठिगने क़ैदी ने कहा---उसी का बदला चुकाने की तैयारी है पठान।

काले खाँ तिरस्कार के स्वर में बोला---किससे बदला चुकाओगे भाई,

कर्मभूमि
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