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'और आप क्या समझते थे, कोई पंचायत है, जहाँ शराब और हुक्के के साथ सारा फैसला हो जायगा?'

'मगर फरियाद तो इस तरह नहीं की जाती।'

'हमने तो कोई रिआयत नहीं चाही थी।'

'रिआयत तो थी ही। जब तुमने एक शर्त पर जमीन ली, तो इंसाफ़ यह कहता है कि वह शर्त पूरी करो। पैदावार की शर्त पर किसानों ने ज़मीन नहीं जोती थी; बल्कि सालाना लगान की शर्त पर। जमींदार या सरकार को पैदावार की कमी-बेशी से कोई सरोकार नहीं है।'

'जब पैदावार के महँगे हो जाने पर लगान बढ़ा दिया जाता है, तो कोई वजह नहीं कि पैदावार के सस्ते हो जाने पर घटा न दिया जाय। मन्दी में तेज़ी का लगान वसूल करना सरासर बेइन्साफी है।'

'मगर लगान लाठी के जोर से तो नहीं बढ़ाया जाता। उसके लिए भी तो कानून है?'

सलीम को विस्मय हो रहा था, इतनी भयानक परिस्थिति सुनकर भी अमर इतना शान्त कैसे बैठा हुआ है। इसी दशा में उसने यह खबरें सुनी होतीं, तो शायद उसका खून खौल उठता और वह आपे से बाहर हो जाता। अवश्य ही अमर जेल में आकर दब गया है। ऐसी दशा में उसने उन तैयारियों को उससे छिपाना ही उचित समझा, जो आजकल दमन का मुकाबला करने के लिए की जा रही थीं।

अमर उसके जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था। जब सलीम ने कोई जवाब न दिया, तो उसने पूछा--तो आजकल वहाँ कौन है? स्वामी जी हैं?

सलीम ने सकुचाते हुए कहा--स्वामीजी तो शायद पकड़ गये। मेरे बाद ही वहाँ सकीना पहँच गयी।

'अच्छा! सकीना भी परदे से निकल आई। मुझे तो उससे ऐसी उम्मीद न थी।'

'तो क्या तुमने समझा था कि आग लगाकर तुम उसे एक दायरे के अन्दर रोक लोगे?'

अमर ने चिन्तित होकर कहा--मैंने तो यही समझाया कि हमने हिंसाभाव को लगाम दे दी है और वह काबू से बाहर नहीं हो सकता।

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कर्मभूमी