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'कैसे-कैसे शरीफ़ आदमी हमारी तरफ से लड़ रहे हैं! पूछो, इन बेचारों को क्या लेना है, जो अपना सुख-चैन छोड़कर, अपने बराबरावालों से दुश्मनी मोल लेकर जान हथेली पर लिये तैयार हैं।'

'हमारे ऊपर अल्लाह का रहम है। इन डाक्टर साहब ने पिछले दिनों जब प्लेग फैला था, ग़रीबों की ऐसी खिदमत की कि वाह! जिनके पास अपने भाई-बंद तक न खड़े होते थे, वहाँ बेधड़क चले जाते थे और दवा-दारू, रुपया पैसा, सब तरह की मदद तैयार! हमारे हाफिजजी तो कहते थे, यह अल्लाह का फ़रिश्ता है।'

'सुनो, सुनो, बकवास करने को रात भर पड़ी है।'

'भाइयो! पिछली बार जब आपने हड़ताल की थी, उसका क्या नतीजा हुआ? अगर फिर वैसी ही हड़ताल हुई, तो उससे अपना ही नुकसान होगा। हममें से कुछ लोग चुप रह जायँगे, बाकी आदमी मतभेद हो जाने के कारण आपस में लड़ते रहेंगे और असली उद्देश्य की किसी को सुधि न रहेगी। सरगनों के हटते ही पुरानी अदावतें निकाली जाने लगेंगी, गङे मुरदे उखाड़े जाने लगेंगे; न कोई संगठन रह जायगा, न कोई जिम्मेदारी। सभी पर आतंक छा जायगा, इसलिए अपने दिल को टटोलकर देख लो। अगर उसमें कच्चापन हो, तो हड़ताल का विचार दिल से निकाल डालो। ऐसी हड़ताल से दुर्गन्ध और गन्दगी में मरते जाना कहीं अच्छा है। अगर तुम्हें विश्वास है कि तुम्हारा दिल भीतर से मजबूत है, उसमें हानि सहने की, भूखों मरने को, कष्ट झेलने की सामर्थ्य है, तो हड़ताल करो, प्रतिज्ञा कर लो कि जब तक हड़ताल रहेगी तुम अदावतें भूल जाओगे, नफे-नुकसान की परवाह न करोगे। तुमने कबड्डी तो खेली ही होगी। कबड्डी में अक्सर ऐसा होता है कि एक तरफ के सब गुइयाँ मर जाते हैं। केवल एक खिलाड़ी रह जाता है; मगर वह एक खिलाड़ी भी उसी तरह क़ानून-क़ायदे से खेलता चला जाता है। उसे अन्त तक आशा बनी रहती है कि वह अपने मरे गुइयों को जिला लेगा ओर सब-के-सब फिर पूरी शक्ति से बाजी जीतने का उद्योग करेंगे। हरेक खिलाड़ी का एक ही उद्देश्य होता है--पाला जीतना। इसके सिवा उस समय उसके मन में कोई भाव नहीं होता। किस गुइयाँ ने उसे कब गाली दी थी, कब उसका कनकौआ फाड़ डाला था, या कब उसको चूंसा मारकर भागा

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