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सहसा लाला धनीराम खड़े होकर भर्राई हई आवाज़ में बोले---सज्जनों जिस भवन को एक-एक कंकड़ जोड़-जोड़ कर पचास साल से बना रहा था, वह आज एक क्षण में ढह गया, ऐसा ढह गया कि उसकी नींव का पता नहीं। अच्छे-से-अच्छे मसाले दिये, अच्छे-से-अच्छे कारीगर लगाये, अच्छे-से-अच्छे नक़शे बनवाये, भवन तैयार हो गया था, केवल कलस बाकी था। उसी वक्त एक तूफान आता है और उस विशाल भवन को इस तरह उङा ले जाता है, मानो फूस का ढेर हो! मालूम हुआ कि वह भवन केवल मेरे जीवन का एक स्वप्न था; स्वप्न कहिये, चाहे काला स्वप्न कहिए पर था स्वप्न ही। वह स्वप्न भंग हो गया---भंग हो गया!

यह कहते हुए वह द्वार की ओर चले।

हाफ़िज़ हलीम ने शोक के साथ कहा---सेठजी, मुझे और मैं उम्मीद करता हूँ कि बोर्ड को आपसे कामिल हमदर्दी है।

सेठजी ने पीछे फिरकर कहा---अगर बोर्ड को मेरे साथ हमदर्दी है, तो इसी वक्त मुझे यह अख्तियार दीजिये कि जाकर लोगों से कह दूँ, बोर्ड ने तुम्हें वह जमीन दे दी। वरना वह आग कितने ही घरों को भस्म कर देगी, कितनों ही के स्वप्नों को भंग कर देगी।

बोर्ड के कई मेम्बर बोले---चलिए, हम लोग भी आपके साथ चलते हैं।

बोर्ड के बीस सभासद उठ खड़े हुए। सेन ने देखा कि वहाँ कुल चार आदमी रहे जाते हैं, तो वह भी उठ पड़े, और उनके साथ उनके तीनों मित्र भी उठे। अन्त में हाफ़िज़ हलीम का नम्बर आया।

जुलस उधर से नैना की अर्थी लिये चला आ रहा है। एक शहर में इतने आदमी कहाँ से आ गये! मीलों लम्बी घनी क़तार है--शान्त, गंभीर, संगठित जो मर मिटना चाहती है। नैना के बलिदान ने उन्हें अजेय, अभेद्य बना दिया है।

उसी वक्त बोर्ड के पचीसों मेम्बरों ने सामने से आकर अर्थी पर फूल बरसाये और हाफ़िज हलीम ने आगे बढ़कर ऊँचे स्वर में कहा--भाइयों! आप म्युनिसिपलटी के मेम्बरों के पास जा रहे हैं, मेम्बर खुद आपका इस्तक़बाल करने आये हैं। बोर्ड ने आज इत्तफाक राय से पूरा प्लाट आप लोगों को देना मंजूर कर लिया। मैं इस पर बोर्ड को मुबारकबाद देता हूँ और

कर्मभूमि
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