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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/३९९

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यादगार नसब की जाय, ताकि आनेवाली नसलें उसकी शानदार कुरबानी की याद ताजा करती रहें।

दोस्तो, मैं इस वक्त आपके सामने कोई तकरीर नहीं करता हूँ। यह न तकरीर करने का मौका है न सुनने का, रोशनी के साथ तारीकी है, जीत के साथ हार और खुशी के साथ गम। तारीकी और रोशनी का मेल सुहानी सुबह होती है, और जीत और हार का मेल सुलह! यह खुशी और ग़म का मेल एक नये दौर का आगाज़ है और खुदा से हमारी दुआ है, कि यह दौर हमेशा कायम रहे, हममें ऐसे ही हक पर जान देनेवाली पाक रूहें पैदा होती रहें, क्योंकि दुनिया ऐसी ही रूहों की हस्ती से कायम है। आपसे हमारी गुजारिश है कि इस जीत के बाद हारनेवालों के साथ वही बर्ताव कीजिए, जो बहादुर दुश्मन के साथ किया जाना चाहिए। हमारी इस पाक सरजमीन में हारे हुए दुश्मनों को दोस्त समझा जाता था। लड़ाई खत्म होते ही हम रंजिश और गुस्से को दिल से निकाल डालते थे, और हम दिल खोलकर दुश्मन से गले मिल जाते थे। आइए, हम और आप गले मिलकर उस देवी की रूह को खुश करें, जो हमारी सच्ची रहनुमा, तारीकी में सुबह का पैगाम लाने वाली सुफेदी थी। खुदा हमें तौफीक दे कि इस सच्चे शहीद से हम हक़परस्ती और खिदमत का सबक हासिल करें।

हाफिज़जी के चुप होते ही 'नैना देवी की जय!' की ऐसी श्रद्धा में डूबी हुई ध्वनि उठी कि आकाश तक हिल उठा। फिर हाफिज हलीम की भी जय जयकार हुई और जलूस गंगा की तरफ रवाना हो गया। बोर्ड के सभी मेम्बर जलूस के साथ थे। सिर्फ हाफिज हलीम म्युनिसिपैलिटी के दफ्तर में जा बैठे और पुलीस के अधिकारियों से कैदियों की रिहाई के लिये परामर्श करने लगे।

जिस संग्राम को छः महीने पहले एक देवी ने आरंभ किया था, उसे आज एक दूसरी देवी ने अपने प्राणों की बलि देकर अन्त कर दिया।


१०

इधर सकीना ज़नाने जेल में पहुँची, उधर सुखदा, पठानिन और रेणुका की रिहाई का परवाना भी आ गिरा। उसके साथ ही नैना की हत्या का

कर्मभूमि
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