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हमारा मस्तक ऊँचा कर दिया। सुखदा ने जो कुछ किया, वह तो आप लोग मुझसे ज्यादा जानती हैं। आज लगभग तीन साल हुए, मैं विद्रोह करके घर से भागा था। मैं समझता था, इनके साथ मेरा जीवन नष्ट हो जायगा; पर आज मैं उनके चरणों की धूल माथे पर लगाकर अपने को धन्य समझूँगा। मैं सभी माताओं और बहनों के सामने उनसे क्षमा माँगता हूँ।

सलीम ने मुसकराकर कहा---यों जबानी नहीं, कान पकड़कर एक लाख मरतबा उठो-बैठो।

अमर ने उसे कनखियों से देखा और बोला---अब तुम मैजिस्ट्रेट नहीं हो भाई, भूलो मत। ऐसी सजाएँ अब नहीं दे सकते।

सलीम ने फिर शरारत की। सकीना सें बोला---तुम चुपचाप क्यों खड़ी हो सकीना? तुम्हें भी तो इनसे कुछ कहना है, या मौका तलाश कर रही हो?

फिर अमर से बोला---आप अपने क़ौल से फिर नहीं सकते जनाब! जो वादे किये हैं, वह पूरे करने पड़ेंगे!

सकीना का चेहरा मारे शर्म के लाल हो गया। जी चाहता था, जाकर सलीम के चुटकी काट ले! उसके मुख पर आनन्द और विजय का ऐसा गाढ़ा रंग था, जो छिपाये न छिपता था। मानो उसके मुख पर बहुत दिनों से जो कालिमा लगी हुई थी, वह आज घुल गयी हो, और वह संसार के सामने अपनी निष्कलंकता का ढिंढोरा पीटना चाहती हो। उसने पठानिन को ऐसी आँखों से देखा, जो तिरस्कार भरे शब्दों में कह रही थीं--अब तुम्हें मालूम हुआ, तुमने कितना घोर अनर्थ किया था! अपनी आँखों में वह कभी इतनी ऊँची न उठी थी। जीवन में उसे इतनी श्रद्धा और इतना सम्मान मिलेगा, इसकी तो उसने कभी कल्पना न की थी।

सुखदा के मुख पर भी कुछ कम गर्व और आनन्द की झलक न थी! यहाँ जो कठोरता और गरिमा छाई रहती थी, उसकी जगह जैसे माधुर्य खिल उठा है। आज उसे कोई ऐसी विभूति मिल गयी है, जिसकी कामना अप्रत्यक्ष होकर भी उसके जीवन में एक रिक्ति, एक अपूर्णता की सूचना देती रहती थी। आज उस रिक्ति में जैसे मधु भर गया है, वह अपूर्णता जैसे पल्लवित हो गयी है। आज उसने पुरुष के प्रेम में अपने नारीत्व को

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कर्मभूमि