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पाया है। उसके हृदय से लिपटकर अपने को खो देने के लिए आज उसके प्राण कितने व्याकुल हो रहे हैं। आज उसकी तपस्या मानो फलीभूत हो गयी है।

रही मुन्नी, वह अलग विरक्त भाव से सिर झुकाये खड़ी है। उसके जीवन की सूनी मुंडेर पर एक पक्षी न जाने कहाँ से उड़ता हुआ आकर बैठ गया था। उसे देखकर वह अंचल में दाना धरे, आ! आ! कहती, पाँव दबाती हुई उसे पकड़ लेने के लिए लपककर चली। उसने दाना जमीन पर बिखेर दिया। पक्षी ने दाना चुगा, उसे विश्वास-भरी आँखों से देखा, मानो पूछ रहा हो--तुम मझे स्नेह से पालोगी, या चार दिन मन बहलाकर फिर पर काटकर निराधार छोड़ दोगी! लेकिन उसने ज्यों ही पक्षी को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, पक्षी उड़ गया, और तब दूर की एक डाली पर बैठा हुआ उसे कपट-भरी आँखों से देख रहा था, मानो कह रहा हो---मैं आकाशगामी हूँ, तुम्हारे पिंजरे में मेरे लिए सूखे दाने और कुल्हिया में पानी के सिवा और क्या था!

सलीम ने नाँद में चूना डाल दिया। सकीना और मुन्नी ने एक-एक डोल उठा लिया और पानी खींचने चलीं।

अमर ने कहा—बाल्टी मुझे दे दो, मैं भरे लाता हूँ!

मुन्नी बोली---तुम पानी भरोगे और हम बैठे देखेंगे?

अमर ने हँसकर कहा--और क्या तुम पानी भरोगी, मैं तमाशा देखूँगा?

मुन्नी बाल्टी लेकर भागी। सकीना भी उसके पीछे दौड़ी।

रेणुका जमाई के लिए कुछ जलपान बना लाने चली गयी थी। यहाँ जेल में बेचारे को रोटी-दाल के सिवा और क्या मिलता है। वह चाहती थी, सैकड़ों चीज बनाकर विधि-पूर्वक जमाई को खिलाये। जेल में भी रेणुका को घर के सभी सुख प्राप्त थे। लेडी जेलर, चौकीदारिनें और अन्य कर्मचारी सभी उसके गुलाम थे। पठानिन खड़ी खड़ी थक जाने के कारण जाकर लेट रही थी। मुन्नी और सकीना पानी भरने चली गयीं। सलीम को भी सकीना से बहुत-सी बातें कहनी थीं। वह भी बम्बे की तरफ चला। यहाँ केवल अमर और सुखदा रह गये।

अमर ने सुखदा के समीप आकर बालक को गले लगाते हुए कहा---

कर्मभूमि
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