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बेदाग छोड़ देती। ऐसी देवी की तो प्रतिमा बनाकर पूजनी चाहिए। उसने अपनी सारी बहनों का मुख उज्ज्वल कर दिया।

अमरकान्त ने कहा-–लेकिन यह तो कोई न्याय नहीं कि काम कोई करे, सज़ा कोई पाये।

सुखदा ने उग्र भाव से कहा--वे सब एक हैं। जिस जाति में ऐसे दुष्ट हों उस जाति का पतन हो गया है। समाज में एक आदमी कोई बुराई करता है तो सारा समाज बदनाम हो जाता है और उसका दण्ड सारे समाज को मिलना चाहिए। एक गोरी औरत को सरहद का कोई आदमी उठा ले गया था। सरकार ने उसका बदला लेने के लिये सरहद पर चढ़ाई करने की तैयारी कर दी थी। अपराधी कौन है, इसे पूछा भी नहीं। उसकी निगाह में सारा सूबा अपराधी था। इस भिखारिन का कोई रक्षक न था। उसने अपनी आबरू का बदला खुद लिया। तुम जाकर वकीलों से सलाह लो, फाँसी न होने पावे, चाहे कितने ही रुपये खर्च हो जायें। मैं तो कहती हूँ, वकीलों को इस मुक़दमे की पैरवी मुफ्त करनी चाहिए। ऐसे मुआमले में भी कोई वकील मेहनताना माँगे, तो मैं समझूँगी वह मनुष्य नहीं। तुम अपनी सभा में आज जलसा करके चन्दा लेना शुरू कर दो। मैं इस दशा में भी इसी शहर से हजारों रुपये जमा कर सकती हूँ; ऐसी कौन नारी है जो उसके लिए नाहीं करदे।

अमरकान्त ने उसे शान्त करने के इरादे से कहा--जो कुछ तुम चाहती हो, वह सब होगा। नतीजा कुछ भी हो; पर हम अपनी तरफ से कोई बात उठा न रखेंगे। मैं जरा प्रो० शान्तिकुमार के पास जाता हूँ। तुम जाकर आराम से लेटो।

'मैं भी अम्मा के पास जाऊँगी। तुम मुझे छोड़कर चले जाना।'

अमर ने आग्रह-पूर्वक कहा--तुम चलकर शान्ति से लेटो, मैं अम्माँ से मिलता चला जाऊँगा।

सुखदा ने चिढ़कर कहा--ऐसी दशा में जो शान्ति से लेटे वह मृतक है ! इस देवी के लिए तो मुझे प्राण भी देने पड़ें, तो खुशी से दूँ। अम्माँ से मैं जो कहूँगी, वह तुम नहीं कह सकते। नारी के लिए नारी के हृदय में जो तड़प होगी, वह पुरुषों के हृदय में नहीं हो सकती। मैं अम्माँ से इस मुक से के

कर्मभूमि
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