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सुन चुका हूँ, अखबारों में पढ़ चुका हूँ। ऐसे खयालात बहुत ऊँचे, बहुत पाकीज़ा, दुनिया में इन्क़लाब पैदा करने वाले हैं और किसनों ही ने इन्हें ज़ाहिर करके नामवरी हासिल की है लेकिन इल्मी बहस दूसरी चीज़ है, उस पर अमल करना दूसरी चीज़ है। बग़ावत पर इल्मी बहस कीजिये, लोग शौक से सुनेंगे। बग़ावत करने के लिए तलवार उठाइये और आप सारी सोसाइटी के दुश्मन हो जायेंगे। इल्मी बहस से किसी को चोट नहीं लगती। बग़ावत से गरदनें कटती हैं। मगर तुमने सकीना से भी पूछा, वह तुमसे शादी करने पर राजी है ?

अमर कूछ झिझका। इस तरफ उसने ध्यान ही न दिया था। उसने शायद दिल में समझ लिया, मेरे कहने की देर है, वह तो राजी ही है। उन शब्दों के बाद अब उसे कुछ पूछने को जरूरत न मालूम हुई।

'तुम्हें यकीन कैसे हुआ?'

'उसने ऐसी बातें की हैं, जिनका मतलब इसके सिवा और कुछ हो हो नहीं सकता।'

'तुमने उससे कहा--मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ?'

'उससे पूछने की मैं ज़रूरत नहीं समझता।'

'तो एक ऐसी बात को, जो तुमसे उसने एक हमदर्द के नाते कही थीं, तुमने शादी का वादा समझ लिया। वाहरी आपकी अक्ल ! मैं कहता हूँ तुम भंग तो नहीं खा गये हो या बहुत पढ़ने से तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है ? परी से ज्यादा हसीन बीबी, चांद-सा बच्चा और दुनिया को सारी नेमतों को आप तिलांजलि देने पर तैयार है, उस जुलाहे की नमकीन और शायद सलीकेदार छोकरी के लिये! तुमने इसे भी काई तकरीर या मजमून समझ रखा है ? सारे शहर में तहलका पड़ जायेगा जनाब, भोचाल आ जायगा, शहर ही में नहीं, सूबे भर में, बल्कि शुमाली हिन्दोस्तानभर में। आप है किस फेर में। जान से हाथ धोना पड़े तो ताज्जुब नहीं।'

अमरकान्त इन सारी बाधाओं को सोच चुका था। इनसे वह जरा भी विचलित न हुआ था। और अगर इसके लिये समाज दण्ड देता है, तो उसे परवाह नहीं। वह अपने हक के लिये मर जाना इससे कहीं अच्छा समझता है कि उसे छोड़कर कायरों की ज़िन्दगी काटे। समाज उसकी जिन्दगी को

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कर्मभूमि