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राजा टोडरमल
 


था। तुरत बारियों पर धावा किया है वज़ीर खाँ को मर्द बनाकर किले के बाहर निकाला और दुश्मनों को दोलका के तंग मैदान में जा लिया। वहाँ ,खूब घमासान की लड़ाई हुई। शत्रुपक्ष की नीयत थी कि राजा को ठिकाने लगायें। पहले ही घात लगाये बैठा था! परन्तु राजा की सिंह-सुलभ ललकार और वज्रघातिनी तलवार ने उसको सबै ताना-बाना तोड़ डाला। वह मुहिम मारकर यशोमण्डित राजधानी को लौटा और दूना मान-सम्मान प्राप्त किया।

पर वह समय ही कुछ ऐसी घटनापूर्ण था और सच्चे कर्तव्यनिष्ट कर्मचारियों का कुछ ऐसा टोटा था कि टोडरमल जैसे उत्साही कार्य- कुशल सेवक को चैन से बैठना संभव न था। गुजरात से आया ही थी कि बंगाल में फिर जोर-शोर से आँधी उठी। पर इस बार उसका रंग कुछ और ही था। सेना और सरदार सेनापति से बाग़ी हो गये थे। अकबर ने टोडरमल को रवाना किया और उसने इस विप्लव को ऐसी चतुराई और सुन्दर युक्तियो से ठंडा किया कि किसी को कानों- कान खबर न हुई। नहीं तो दुश्मन कब सिर उठाने से बाज रहता! राजा से ईष्र्या-द्वेष रखनेवाले कुंछ पामरों ने घात लगाई थी कि सेना के निरीक्षण के समय राजा का काम तमाम कर दें, पर वह एक ही सयाना था, ऐसों के पंजे में कब आ सकता था। साफ़ निकल गया।

१५८२ ई० में आगरे को लौटा! अपनी सच्ची स्वामि-भक्ति और सेवाओं के कारण राज्य का 'दीवाने-बुल' अथवा अर्थ-मंत्री बना दिया गया है और २२ सूबों पर उसकी कलम दौड़ने लगी। इस समय से मृत्युकाल तक टोडरमल को अपनी कलम का जौहर और राज्यप्रबन्ध-विषयक प्रतिभा के चमत्कार दिखाने का ,खुब मौका मिला। केवल एक बार यूसुफ़जइयों की मुहिम में राजा मानसिंह की सहायता को जाना पड़ा था।

यद्यपि राजा बहुत ही साधु-स्वभाव और शुद्ध निश्छल हृदय का व्यक्ति था, फिर भी १५८९ ई० में किसी दुश्मन ने उस पर तलवार चढ़ाई। सौभाग्यवश वह तो बाल-बाल बच गया, पर उसका