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कलम, तलवार और त्याग
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फल एक अभागे खत्री बच्चे को भुगतना पड़ा। गहरा सन्देह है कि यह किसी द्वेष रखनेवाले सरदार वा अधिकारी का इशारा था पर संभवतः यह हमला मौत का ही था। क्योंकि इस घटना के थोड़े ही दिन बाद राजा को इस लोक विदा हो जाना पड़ा। निर्दयी ने दूसरा हमला ज्वर के रूप में किया और अबकी जान लेकर ही छोड़ा।

ऐतिहासिको ने टोडरमल पर खूब आलोचना-प्रत्यालोचना की है, पर जिन लोगों को उससे आत्यन्तिक मतभेद है, वह भी उसका भला ही मनाते है। अकबर के समस्त बड़े अधिकारियों और सरदारों में वह सबसे अधिक सच्चा और विश्वासी शुभचिन्तक था। उसके सिवा और कोई मन्त्री, सूबेदार आदि ऐसा न था जिसने दगा देने और नमकहरामी का धब्बा अपने ऊपर न लगाया हो। वही एक पुरुष है। जिसकी नेकनामी की चादर बगले के पर की तरह स्वच्छ है। रागद्वेष युक्त ऐतिहासिकों ने उस पर धब्बे लगाने की कोशिश जरूर की, पर विफल रहे।

टोडरमल की कारगुजारियों को बयान करना अकबर के राज्यकाल का इतिहास लिखना है। ऐसा कौन-सा विभाग था दीवानी, माल या सेना, जिस पर टोडरमले की कार्य-कुशलता और प्रबन्ध-पटुता की मुहर न लगी हो। शाही लश्कर पहले कोसों में उतरा करता था। हाथीखाना कुछ यहाँ है तो कुछ वहाँ। तोपखाने का एक हिस्सा इस सिरे पर है तो दूसरा उस सिरे पर। सारांश बड़ी अस्त-व्यस्तता रहा करती थी।दोडरमल की नियम-प्रिय प्रकृति ने पैदल, सवार, तोपखाना, रसद, बाजार, लश्कर आदि के उतारने के लिए व्यवस्थाएँ निकाली। इसी सिलसिले में आइने दाग' अर्थात् घोड़े पर दाग लगाने के नियम की चर्चा भी आवश्यक मालूम होती है। पहले स्थायी सेना न रखी जाती थी, सामन्तों सरदारों को जागीरें मिल जाया करती थीं और उनको हुक्म था कि जब आज्ञा हो अपनी नियत सेना के साथ दरबार में हाजिर हुआ करें। सरदार इसमें दाव-पेच निकालकर जेब भरते, हाजिरी और जाँच के समय घोड़ों की नियत संख्या इधर-उधर से माँग जाँच-