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कलम, तलवार और त्याग
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और ओज होता था कि थोड़े ही दिनों में वह पन्ने शिक्षित-समुदाय में अंदर की दृष्टि से देखा जाने लगा। और सबको मालूम हो गया कि देश के सार्वजनिक जीवन में एक बड़े ही योग्य व्यक्ति की वृद्धि हुई है। इसका व्यावहारिक प्रमाण यह मिला कि आप बम्बई प्रान्तीय कौसिल के मंत्री बना दिये गये और चार साल तक इस कार्यं को भी आपने बड़ी तत्परता और योग्यता के साथ किया।

इन सेवाओं की बदौलत आपकी कीर्ति देश के दूसरे प्रान्तों मैं भी कस्तुरी की गन्ध की तरह फैलने लगी और अन्त में १८९७ ई० में आप इण्डियन नैशनल कांग्रेस के मन्त्री-पद पर प्रतिष्ठित हुए। इसी साल आपको अपनी देश-भक्ति का परिचय देने का एक सुयोग हाथ लगा। कांग्रेस और अन्य देश-हितैषी बहुत अरसे से यह शिकायत करते आ रहे थे कि ऊँचे पदों पर आम तौर से अंग्रेज ही नियुक्त किये जाते हैं और भारतवासी अधिक योग्यता रखने पर भी उनसे वंचित रहते हैं। अन्त मैं पार्लमेंट का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ और लार्ड विलबी की अध्यक्षता में एक शाही कमीशन नियुक्त किया गया कि इस बात की जाँच-पड़ताल करे कि यह शिकायतें कहाँ तक साधार हैं और कुछ ऐसी तजवीजें पेश करे जो सरकार के लिए नियमावली का काम दें। दुःख है कि ब्रिटिश नेकनीयती और न्याय-निष्ठा का यह अन्तिम परिचय और प्रमाण था और ऐग्लो इंडियन वर्ग ने जिसे बेदर्दी के साथ इन प्रस्तावों को दलन किया वह उनके आचरण और नीति पर सदा एक काला धब्बा बना रहेगा।

उस समय तक मिस्टर गोखले की सूक्ष्मदर्शिता, ओज-भरे वक्तृत्व भारतीय प्रश्नों से सम्यक अभिज्ञता और आर्थिक विषयों की समीक्षा की योग्यता की’ सारे भारत में धूम मच रही थी, इसलिए दक्षिण के लोगों के प्रतिनिधि बनाकर विलबी कमीशन के सामने मत-प्रकाश के लिए भेजे गये। मिस्टर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मिस्टर दीनशा ईदुलजी चाचा और मिस्टर सुब्रह्मण्य ऐयर के साथ अप इंगलैण्ड गये। वहाँ कमीशन के सामने अपने जो भाषण किया वह भाषा के सौष्ठव और