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श्री गोपाल कृष्ण गोखले
 


ओज, युक्ति, तक की सबलता और देश भक्ति के उत्साह की दृष्टि से बेजोड़ है। यद्यपि यह भाषण बड़ा लम्बा था, फिर भी कमिश्नरों ने बड़ी उदारता और प्रसन्नता के साथ उसकी सराहना की और इसमें भी सन्देह नहीं कि उनके प्रस्तावों पर उसका गहरा असर पड़ा। भारत की गरीबी और सरकार की अनुचित कठोरता का करुण शब्दों में वर्णन करने के अनन्तर आपने कहा--

'वर्तमान शासन प्रणाली का यह परिणाम हो रहा है कि हमारी शारीरिक और मानसिक शक्ति दिन दिन छीजती जा रही है। हम दैन्य और अपमान का जीवन स्वीकार करने को बाध्य किये जाते हैं। पद-पद पर हमको इस बात की याद दिलाई जाती है कि हम एक दलित-जाति के जन है। हमारी स्वाधीनता का गला बेदर्दी से घटा जा रहा है, और यह सब केवल इसलिए कि वर्तमान शासन-व्यवस्था की नींव और मजबूत हो जाय। इंगलैण्ड को हरएक युवक जिसको ईश्वर ने बुद्धि और उत्साह के गुण प्रदान किये हैं, आशा करता है कि मैं भी किसी न किसी दिन राष्ट्र:रूपी जहाज का कप्तान बनूंगा, मैं भी किसी न किसी दिन ग्लैडस्टल का पद और नेलसन का यश प्राप्त करूंगा। यह भावना एक स्वप्न-मात्र क्यों न हो, पर उसके उत्साह और उच्चकांक्षा को उभारती हैं। वह जी-जान से गुण सीखने और योग्यता बढ़ाने के यत्न में लग जाता है। हमारे देश के अभागे नौजवान ऐसे- उत्साह-वर्द्धक स्वप्न नहीं देख सकते। वे ऐसे ऊँचे हवाई महल भी नहीं उठा सकते। वर्तमान शासन-प्रणाली के रहते यह संभव नहीं कि हम उस ऊँचाई तक पहुँच सके, जिसकी शक्ति और योग्यता प्रकृति ने हमें प्रदान की है। वह नीति-बल जो प्रत्येक रवाधीन जाति का विशेष गुण है। हममें लुप्त होता जा रहा है। अन्त में इस स्थिति का शोचनीय परिणाम यही होगा कि हमारी शासन-प्रबन्ध और युद्ध की योग्यता, अव्यवहारवश मष्ट हो जायगी और हमारी जाति का इतना अधःपतन हो जायगा कि